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भारतीय संसद में विधि निर्माण की प्रक्रिया bhartiy sansad me vidhi nirman ki prakriya

 
भारतीय संसद में विधि निर्माण की प्रक्रिया


भारतीय संसद में विधि निर्माण की प्रक्रिया  bhartiy sansad me vidhi nirman ki prakriya


"knowledge with ishwar" 


नमस्कार दोस्तों आज हम जानेंगें की भारत की संसद में विधी का निर्माण किस प्रकार से होता है किस प्रकार से विधेयक को प्रस्तुत किया जाता है। 


दोस्तो जैसा की आपको ज्ञात होगा संसद का प्रमुख एवं सबसे महत्वपूूर्ण कार्य देश के समुचित विकास व प्रगति व शांति व्यवस्था को बनाए रखने हेतु विधि का निर्माण करना है। 


भारत की संसद में संघ सूची, समवर्ती सूची एवं यदि कोई संकट आ जाता है तो राज्य सूची के विषयों पर विधि का निर्माण किया जा सकता हैं एवं भारत के संविधान मे व्यवस्थापिका को इन विषयो पर कानुन बनाने का अधिकार दिया हैं। सामान्य भाषा में समझे तो विधेयक के दो प्रकार होतें हैं। साधारण विधेयक तथा वित्त विधेयक।


किसी भी साधारण विधेयक के द्वारा कानून का निर्माण होता है तो वह  किस प्रकार का होता है। विधि निर्माण की सामान्य प्रक्रिया क्या होता है? इनमें वाचनों की संख्या कितनी होती है। जैसा की आप जानतें हैं। साधारण विधेयक की संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है तथा दोनों सदनों में सामान्य या साधारण विधेयक से संबधित प्रक्रिया समान ही होती हैं।

तो दोस्तों आइये हम जानते है विधि निर्माण की सामान्य प्रक्रिया।


 भारतीय संसद में विधि निर्माण की प्रक्रिया  bhartiy sansad me vidhi nirman ki prakriya


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(1.) साधारण विधेयक द्वारा विधि निर्माण की प्रक्रियाः-


1. विधेयक प्रस्तुतीकरण (प्रथम वाचन)ः- विधी निर्माण की प्रक्रिया के प्रथम वाचन में संसद का कोई भी सदस्य एक माह की पूर्व सूचना पर संसद की स्वीकृति प्राप्त होने पर विधेयक को संसद में प्रस्तुत करता हैं। इस समय विधेयक के ऊपर किसी भी प्रकार की कोई विशेष या विस्तृत चर्चा नही की जाती है। मात्र विधेयक को प्रस्तुत किया जाता हैं। विधेयक किस हेतु प्रस्तुत किया गया है उस विधेयक के शिर्षक को पढकर सबको सुना दिया जाता है। अतः विधेयक के प्रस्तुतीकरण की जो प्रक्रिया होती है वही प्रथम वाचन के नाम से जानी जाती है। प्रक्रिया के इस स्तर पर किसी भी प्रकार का कोई वाद विवाद या बहस नहीं की जाती हैं।


2. द्वितीय वाचनः- प्रथम वाचन के पश्चात् सदन मे विधेयक के पारित होने की प्रक्रिया आरंभ हो जाती हैं। इस स्तर के प्रारंभ होने से पूर्व सदन में विधेयक की एक एक प्रतियॉ सभी सदस्यों को वितरित कर दी जाती है। इस प्रक्रिया के दौरान विधेयक के ऊपर कोई विस्तुत चर्चा नहीं होती हैं। केवल विधेयक को प्रस्तुत करनें की मुल अवधारणा या आश्य पर विचार किया जाता हैं। प्रक्रिया के इस स्तर पर संशोधन भी प्रस्तुत नहीं किया जाता हैं। आवश्यक होने पर विधेयक को प्रवर समिती के पास जॉच हेतु भेज दिया जाता हैं।


( संसद के पास बहुत से कार्य एवं दायित्व होतें हैं ऐसी स्थिति में किसी भी पक्ष पर विस्तार से या विस्तृत रूप से चर्चा करना या किसी भी पहलु पर गहन विचार करना एक कठिन कार्य होता हैं। इस हेतु संसद के द्वारा प्रवर समिती का गठन किया जाता है। यह समिती तदर्थ समिती का एक रूप है। इसका निर्माण संसद को आवश्यक सलाह एवं विधेयकों की बारिकी से जॉच हेतु किया जाता हैं )


3. समिती अवस्थाः- यह वह अवस्था या प्रक्रिया होती है जिसमें विधेयक पर बारिकी से या गहन विचार करनें के लिए संसद में छोटी छोटी समितीयों का निर्माण किया जाता है। इस स्तर पर विधेयक के प्रत्येक पहलु एवं अनुच्छेद पर सुक्ष्मता से विचार किया जाता हैं। इस स्तर पर विशेषज्ञों की राय के द्वारा विधेयक में समितीयों के द्वारा संशोधन भी किया जा सकता हैं। यदि इस स्तर पर सुक्ष्मता से विचार कर लिया जाता हैं तो विधेयक को समितीयों के द्वारा संबंधित सदन लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति को (जैसी परिस्थिति हो) प्रस्तुत कर दिया जाता हैं।



4. प्रतिवदेन प्रक्रिया:- यह वह प्रक्रिया होती है जिसमें समितीयो के द्वारा किये गये संशोधनों को सदन के सदस्यों के बीच विधेयक की प्रतियों के माध्यम से वितरित कर दिया जाता हैं। यदि सदन को किये गये संशोधन सही एवं सत्य परिलक्षित होते हैं तो सदन स्वरूप को मान्य कर सकती हैं। गहन विचार के उपरांत मतदान की प्रक्रिया अपनाई जाती है। विधेयक पर मतदान होने के पश्चात विधेयक को स्वीकृत होने पर प्रक्रिया पूर्ण हो जाती हैं।



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5. तृतीय या तीसरा वाचनः- प्रतिवेदन की प्रकिया पूर्ण हो जाने के पश्चात् तृतीय वाचन प्रारंभ हो जाता हैं। प्रस्तुत विधेयक को पारित करनें की जो अंतिम प्रक्रिया या अंतिम अवस्था या स्तर जो होता है वही प्रक्रिया तृतीय वाचन के नाम से जानी जाती हैं। इस स्तर पर विधेयक को पारित करनें की मुल भावना या उदद्ेश्य पर विचार किया जाता हैं। यदि इस स्तर पर विधेयक पारित हो जाता है तो विधेयक को सदन के अध्यक्ष या सभापति क हस्ताक्षर के लिया भेजा जाता है। हस्ताक्षर से विधेयक प्रमाणित हो जाता है तथा इस उपरांत विधेयक को दूसरे सदन की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता हैं।



6. विधेयक का दूसरे सदन में जानाः- उपरोक्त प्रक्रिया पूर्ण होने के पश्चात विधेयक दूसरे सदन में स्वीकृति हेतु आ जाता है। इस सदन में भी विधेयक को पारित करनें की समान प्रक्रिया होती है। दूसरे सदन में पहले सदन में पारित किये गये विधेयक में संशोधन भी कर सकती है। इस प्रकार उपरोक्त प्रक्रिया पूर्ण होने के उपरांत इसे राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हेतु भेज दिया जाता हैं।



7. राष्ट्रपति के हस्ताक्षरः- दोनों सदनो में पारित होने के पश्चात् विधेयक को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हेतु भेज दिया जाता है। राष्ट्रपति या ता हस्ताक्षर कर देतंे है या राष्ट्रपति प्रस्तुत विधेयक को हस्ताक्षर किये बिना ही विधेयक पुनर्विचार हेतु भेज सकतें हैं। यदि इस बार संसद के दोनों सदनो के द्वारा विधेयक को स्वीकृति कर लिया जाता है तो राष्ट्रपति को प्रस्तुत विधेयक पर हस्ताक्षर करना अनिवार्य हो जाता है।



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( 2.) धन विधेयक की विधि निर्माण प्रक्रियाः-


धन विधेयक के संबंध में राज्यसभा को नाम मात्र की शक्तियॉ प्राप्त है । धन विधेयक को केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता हैं। लोकसभा में धन विधेयक के पारित हो जाने के पश्चात इसे राज्यसभा की स्वीकृति हेतु भेज दिया जाता है। राज्यसभा को प्रस्तुत विधेयक को 14 दिनों के भितर लोकसभा को अपने परामर्श के साथ लौटाना होता है। लोकसभा राज्यसभा के परामर्श को मानने के लिए किसी भी प्रकार से बाध्य नहीं है। लोकसभा के द्वारा स्वीकृति हेतु भेजे गये विधेयक में राज्यसभा किसी भी प्रकार का कोई संशोधन करनें की अधिकारी नहीं है। यह अधिकार मात्र लोकसभा को प्राप्त है । इस प्रकार लोकसभा को धन विधेयक के संबंध में एकछत्र अधिकार हैं। 


इस प्रकार लोकसभा के द्वारा पारित करनें के पश्चात इसे राज्यसभा में विचार हेतु भेज दिया जाता है। राज्यसभा मे विचार उपरांत लोकसभा अध्यक्ष धन विधेयक पर हस्ताक्षर करे उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज देता हैं। राष्ट्रपति को प्रस्तुत धन विधेयक पर हस्ताक्षर करनें के उपरांत धन विधेयक कानून का रूप धारण कर लेता हैं।


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