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राज्य का अर्थ, परिभाषा और राज्य के आवश्यक तत्व rajya ka arth or paribhasha

 

राज्य के आवश्यक तत्व


राज्य का अर्थ, परिभाषा और राज्य के आवश्यक तत्व rajya ka arth or paribhasha


"KNOWLEDGE WITH ISHWAR"


मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति समाज में रहकर ही कर सकता है। इसके लिए वह विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आदि संगठनों का निर्माण करता है। इन विभिन्न संगठनों को नियंत्रित करने व इनकी नीतियों का संचालन करने के लिए एक शक्ति का होना आवश्यक होता है। राज्य एक ऐसा संगठन होता है जो इन विभिन्न संगठनों में सहयोग, शक्ति और सुव्यवस्था बनाये रखता है।

राज्य का अर्थः-

राजनीति विज्ञान के अध्ययन का केंद्र बिंदु राज्य ही है। राजनीति विज्ञान में राज्य के अतित वर्तमान और भविष्य का अध्ययन किया जाता हैं। राज्य शब्द की उत्पत्ति अंगेजी भाषा के स्टेट शब्द से हुई है। इसे लेटिन भाषा के  स्टेटस शब्द से लिया गया है। जिसका अर्थ होता है सर्वोच्च स्तर अर्थात राज्य ही सर्वोच्च स्तर होता है उससे उपर कोई नहीं होता है। राज्य शब्द का प्रतिपादन प्रसिद्ध विद्वान मैकियावली ने किया था। दूसरे शब्दों में राज्य एक निश्चित भूभाग पर रहने वाले लोंगों का एक ऐसा समूह है,जिसकी स्वयं की सरकार होती हैं, जो किसी अन्य सत्ता के अधिन नहीं होती है जो स्वयं संप्रभू एवं अखण्डित होती है व जो  पूर्णतः स्वतंत्र होती हैं। राज्य का स्वयं का संविधान होता है।



राज्य की परिभाषाएंः- 


राज्य के संबंध में विभिन्न विद्वानों के द्वारा विचार व्यक्त किये गयें है किंतू सभी विद्वानों की परिभाषांए अलग अलग है। 


1. प्लेटो के अनुसार- ’’मनुष्य को अपने विकास की मंजिल में जिस सामाजिक सहयोग और प्रयास की आवश्यकता पडती है, राज्य उसी सहयोग और प्रयास का परिणाम है।’’


2. मैकियावली के शब्दों में- ’’ सारी शक्तियॉ, जिनका अधिकार जनता पर होता है, चाहे वे राजतंत्र हो या प्रजातंत्र, राज्य है।’’


3. अरस्तु के शब्दो में- ’’राज्य परिवार और ग्रामो का एक ऐसा समुदाय है, जिसका उद्देश्य पूर्ण संपन्न जीवन की प्राप्ति है।’’


4. बोंदॉ के अनुसार- ’’राज्य परिवारों का एक ऐसा संघ है, जो किसी सर्वोच्च शक्ति और नियम द्वारा शासित होता हैं।’’


5. मैकाइवर के शब्दों में- ’’राज्य संघ को कहतें हैं जो उन नियमों के अनुसार कार्य करता है जिसकी घोषणा सरकार करती है। यह एक निश्चित प्रदेशों में बसने वाले लोगों में सामाजिक व्यवस्था बनाए रखता है।’’


6. विलोबी के अनुसार- ’’ राज्य मनुष्य के उस समाज को कहतें है जिसमें एक सत्ता पाई जाती हैं और जो अपने अंतर्गत व्यक्तियों तथा व्यक्ति समूहों के कार्यों पर नियंत्रण रखती है, लेकिन वह स्वयं किसी भी नियंत्रण से मुक्त होती है।’’


7. गार्नर  के अनुसार- ’’राज्य लोगों का एक ऐसा समूदाय है, जो किसी प्रदेश के निश्चित भू-भाग पर स्थायी रूप से रहते हों, जो बाह्य शक्ति के निंयत्रण से आंशिक अथवा पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो तथा जिसमें ऐसी स्वतंत्र सरकार विद्यमान हो, जिसके आदेश का पालन नागरिकों का बहुमत स्वाभाविक रूप से करता हो।’’ 


8. गिलक्राइस्ट के अनुसार- ’’राज्य उसे कहते हैं, जहां कुछ लोग एक निश्चित प्रदेश में एक सरकार कें अधिन संगठित होते हैं। यह सरकार आंतरिक मामलों में अपनी जनता की प्रभुसत्ता को प्रकट करती है और बाहरी मामलों में अन्य सरकारों से स्वतंत्र होती है।’’


9. लास्की के शब्दों में- ’’ राज्य एक विशेष प्रदेश में रहने वाला समाज है, जो समाज और प्रजा में विभाजित है और अपने क्षेत्र में आने वाली या सभी समस्याओं पर प्रभूत्व रखता हैं।’’


10. गेटेल के शब्दों में- ’’ राज्य उन व्यक्तियों का संगठन है जो स्थायी तोर पर निश्चित क्षेत्र में रहतें है। कानूनी दृष्टिकोंण से विदेशी नियंत्रण से स्वतंत्र है, उनकी अपनी संगठित सरकार होती है, जो अपने अधिकार क्षेत्र में रहने वाले सभी लोगों और समूहों के लिए कानून बनाते है। और उन्हें लागू करतें हैं।’’


11. प्रसिद्ध विद्वान बलंटशली के अनुसार- ’’एक निश्चित प्रदेश पर राजनीतिक दृष्टिकोंण से गठित लोगों को ही राज्य कहा जाता है।’’


12. एक अन्य विद्वान वुडरोविल्सन के अनुसार- ’’एक निश्चित क्षेत्र के अंदर कानून द्वारा संगठित लोगों को राज्य कहा जाता है।’’


13. हालेंड के अनुसार- ’’ राज्य मनुष्य के ऐसे समूह का नाम है जो एक निश्चित क्षैत्र में रहते हैं और जिसमें बहु-गणितीय के आधार पर एक वर्ग अपने विरोधियों पर हुकूमत करता है।’


14. बरगस महोदय के अनुसार- ’’ राज्य मानव जाति के एक हिस्से का एक विशेष हिस्सा है जिसे एक संगठित इकाई के रूप में देखा जाता है।’’


15. संयुक्त राज्य अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय को सुनाते हुए कहा था कि’’ राज्य एक निश्चित जमीन पर रहने वाले राजनीतिक समूह का नाम है, जिसकी सिमा एक लिखित संविधान द्वारा तय की गई है और जिसको विद्वान लोगो की प्रवाणगी के साथ स्थापित किया गया है।’’ 


राज्य का अर्थ, परिभाषा और राज्य के आवश्यक तत्व rajya ka arth or paribhasha


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राज्य के आवश्यक तत्वः- किसी भी राज्य के अस्तित्व के लिए इन तत्वों का होना आवश्यक है । राज्य के आवश्यक तत्व चार है जो निम्नानुसार हैः-


1. जनसंख्या


2. निश्चित भूभाग


3. सरकार


4. संप्रभुता


1. जनसंख्याः


जनसंख्या को किसी भी राज्य का प्रथम आवश्यक तत्व माना गया है । बिना किसी मनुष्यों के राज्य के अस्तित्व की कल्पना तक नहीं की जा सकती है। राज्य के नागरिक ही उस राज्य की आधारशीला होती है।


ब्लंटशली के अनुसार- ’’राज्य के व्यक्तित्व का आधार ही जनता है। मनुष्य ही राज्य की आधारशीला है।’’


 जनसंख्या के संबंध में एक प्रश्न और उठता है कि जनसंख्या कैसी हो? किसी भी राज्य की पहचान उस राज्य में रहने वाले लोगों के चरित्र, गुण आदि से होती है। यह माना जाता है कि एक अच्छा नागरिक ही अच्छा राज्य बनाता है राज्य की प्रगति के लिए वहॉ के लोगों का या नागरिकों का परिश्रमी, त्यागी और देशभक्त होना जरूरी है। उन्हें बौद्धिक और शारीरिक दोनों ही दृष्टि से स्वस्थ होना  चाहिए।


2. निश्चित भू-भागः


‘-ब्लंटशली के अनुसार- ’’राज्य का पहला आधार जनता है और इसके साथ ही दूसरा आधार वह धरती है, जहां लोग रहतें हैं। जब तक लोग किसी प्रदेश या भूभाग के अंतर्गत नहीं आते रहते, तब तक वे राज्य की स्थापना नहीें कर सकते।’’ हम व्यक्तियों के किसी समूह को, चाहे वह कितना ही संगठित और अनुशासित क्यों न हो, तब तक राज्य नहीं कह सकते, जब तक कि उसके पास निश्चित भू-भाग न हो। निश्चित भू-भाग से तात्पर्य यह है कि  उसकी सीमाएं निश्चित हो । आदर्श राज्य के लिए संतुलित भू-भाग होना अधिक अच्छा है।


3. सरकारः


राज्य का एक आवश्यक तत्व सरकार भी है। सरकार के अभाव में निश्चित भू-भाग पर रहने वाले लोगों के समूह का कोई अस्तित्व नहीं रहता ओर न ही उन्हें राज्य कहा जा सकता है। राज्य में एक ऐसी संस्था का होना अनिवार्य है, जिसकी आज्ञा मानना प्रत्येक नागरिक के लिए जरूरी हो। डॉ ओम नागपाल के अनुसार- ’’शासन तो राज्य के राजनीतिक सर्वोच्च संगठन  का एक रूप है जो समाज को संचालित करने के नियम बनाता है। और नियमों को क्रियान्वित करता है।’’ सरकार या शासन के अभाव में राज्य में अव्यवस्था और अराजकता की स्थिति निर्मीत होती है। जिससे राज्य का अस्तित्व खतरें में पड़ जाता है।


4. संप्रभूताः-


राज्य का एक आवश्यक तत्व संप्रभूता भी है। एक निश्चित भू-भाग पर रहने वाले लोगांे का एक समूह हो पर यदि उनके पास संप्रभूता नहीं है तो  उसे राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं हो सकता है। संप्रभूता वह शक्ति है जिसके आधार पर राज्य आदेश करता है और उसका पालन करवाता है। राज्य में रहने वाले सभी व्यक्तिओं के लिए इन आदेशों का पालन करना अनिवार्य होता है। आंतरिक क्षेत्र के अतिरिक्त बाह्य क्षेत्र में राज्य संप्रभू है। वह अन्य देशों के साथ संबंध निर्धारित करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र है। विदेश नीति का निर्माण तथा पालन राज्य बिना किसी दबाव के अपनी इच्छा से करता है। इस प्रकार राज्य अपने आंतरिक और बाह्य  आचरण में किसी अन्य शक्ति या संस्था के प्रति कानूनी रूप से उत्तरदायी नहीं होता और इस संप्रभूता के कारण ही राज्य को अन्य संगठनों में श्रेष्ठता प्राप्त करता है।


केंद्रशासित प्रदेश किसे कहतें है? केंद्रशासित प्रदेशों की संख्या कितनी है?


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