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राष्ट्रपति के कार्य एवं शक्तियां, bharat ke rashtrapati ki shaktiyan

राष्ट्रपति के कार्य एवं शक्तियां, bharat ke rashtrapati ki shaktiyan




राष्ट्रपति के कार्य एवं शक्तियां, bharat ke rashtrapati ki shaktiyan

"knowledge with ishwar"

राष्ट्रपति के कार्य एवं शक्तियां, bharat ke rashtrapati ki shaktiyan

 कार्यपालिका 


कार्यपालिका सरकार का एक महत्वपूर्ण अंग होता है। कार्यपालिका मेें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं मंत्रि परिषद सम्मिलीत होतें हैं। भारत मे प्रमुख रूप से वास्तविक एवं कार्यपालिका और नाममात्र की कार्यपालिका प्रचलन में है। यदि हम  नाममात्र की कार्यपालिका की बात करें तो यह नाम मात्र की कार्यपालिका होती है। इसकी शक्ति का प्रयोग कोई दूसरा व्यक्ति करता है। उदहारण के लिए भारत के राष्ट्रपति के पास नाममात्र की कार्यपालिका है कार्यपालिका की समस्त शक्तियों का वास्तविकता में उपभोग प्रधान मंत्री औ मंत्री परिषद के द्वारा किया जाता है। राष्ट्रपति को किसी भी कार्य को करनें से पूर्व प्रधानमत्री एवं मंत्रिपरिषद की अनुमति व परामर्श अनिवार्य होता है।


भारत मे संघात्मक शासन व्यवस्था होने के कारण कार्यपालिका को दो वर्गो में बॉटा गया है। संघीय कार्यपालिका जिसमे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं मंत्री परिषद सम्मिलीत है तथा दूसरा राज्यों की कार्यपालिका जिसमे मुख्यमंत्री, राज्यपाल तथा राज्य मंत्री परिषद सम्मिलित है।


राष्ट्रपति 


जैसा की उपरोक्त वर्णन किया जा चुका हैं राष्ट्रपति के पास नाममात्र की कार्यपालिका होती है। वास्तविक शक्तियो का प्रधानमंत्री के द्वारा उपभोग किया जाता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 52 मे वर्णीत किया गया है कि ’’भारत का एक राष्ट्रपति होगा’’ राष्ट्रपति अपनी समस्त शक्तियों का प्रयोग प्रधानमंत्री व मंत्रीपरिषद की सलाह से करता हैं। भारत के राष्ट्रपति की स्थिती को कई विद्वानो व राजनीतिक चिन्तकों के द्वारा इंग्लैंड के सम्राट के समकक्ष बतायी गयी है।


भारत के राष्ट्रपति का पद एक महत्वपूर्ण पद होता है जिस हेतु भारतीय संविधान द्वारा निर्धारित की गई योग्यताओ व अहर्ताओं का होना आवश्यक है।


भारत के राष्ट्रपति के पद हेतु आवश्यक अर्हताएॅः-


1. वह भारत का नागरिक हो। 

2. राष्ट्रपति के पद हेतु आवश्यक है कि वह 35 वर्ष की उम्र पूर्ण कर चुका हो।

3. राष्ट्रपति के पद हेतु आवश्यक है कि वह लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता या अर्हता रखता हो।

4. वह किसी भी सरकारी सेेवा या सरकारी लाभ के पद पर कार्यरत न हो।

5. वह संविधान द्वारा राष्ट्रपति पद हेतु निर्धारित की गई समस्त योग्यतांए रखता हो।


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निर्वाचन प्रक्रिया व कार्यकालः-


भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर एकल संक्रमणीय मत पद्धति के द्वारा होता है। राष्ट्रपति का चुनाव भारत की जनता या नागरिकों के माध्यम से प्रत्यक्ष चुनाव के आधार पर नहीं किया जाता हैं।


राष्ट्रपति के निर्वाचन में संसद के दोनों सदन के सदस्य साथ ही विधानसभाओ के सदस्यों को सम्मिलीत किया गया है। वहीं यदि राष्ट्रपति के कार्यकाल की बात करें तों राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। राष्ट्रपति इस अवधि के पूर्ण होने से पूर्व या राष्ट्रपति का कार्यकाल पूर्ण होने से पूर्व वह त्याग पत्र देकर अपने पद से मुक्त हो सकता हैं तथा इस प्रकार यदि राष्ट्रपति संविधान के अनुसार निर्धारित किये गये नियमों के अनुसार आचरण नहीं करता है तो राज्यसभा या लोकसभा दोनों में से किसी भी सदन में राष्ट्रपति को महाभियोग प्रक्रिया के द्वारा पद से हटाने की प्रक्रिया की जा सकती है। 



कार्यालय:- राष्ट्रपति भवन या राष्ट्रपति सचिवालय ही राष्ट्रपति का कार्यालय होता है। भारत का राष्ट्रपति भवन नई दिल्ली में स्थित है।


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महाभियोग प्रकियाः- महाभियोग प्रक्रिया वह होती है, जिसके माध्यम से राष्ट्रपति को उसके पद से हटाया जा सकता है या निष्कासित किया जा सकता है। महाभियोग प्रक्रिया का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 56 में किया गया है। राष्ट्रपति को अपने पद से मुक्त संविधान का उल्लंघन करनें केे कारण किया जाता है। महाभियोग प्रक्रिया के प्रस्ताव को प्रस्तुत करने का संसद के दोनों सदनो लोकसभा तथा राज्यसभा को समान अधिकार प्राप्त है महाभियोग प्रस्ताव प्रस्तुत करने से 14 दिन पूर्व इसकी सूचना संबंधित सदन को देना आवश्यक होती हैं। प्रस्ताव पर सदन के 1/4 सदस्योेें के हस्ताक्षर होना भी अनिवार्य हैं। राष्ट्रपति महाभियोग प्रक्रिया के प्रस्ताव को एक सदन में अपने विशिष्ट बहुमत के द्वारा पारित कर दिया जाता है तो इसे दूसरे सदन की स्वीकृति हेतु भेज दिया जाता हैं। दूसरे सदन में  राष्ट्रपति की महाभियोग प्रस्ताव पर गहन विचार किया जाता हैं इस हेतु सदन किसी समिती का निर्माण भी कर सकती हैं। इस अवधि में राष्ट्रपति अपना पक्ष स्वयं या अपने प्रतिनिधी के माध्यम से रख सकता है किंतु यदि दूसरे सदन में भी विचार उपरांत यदि विधेयक को स्वीकृत कर दिया जाता हैै तो राष्ट्रपति को राष्ट्रपति महाभियोग प्रस्ताव पारित होने की उस तिथी से पद से मुक्त समझा जायेगा।

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राष्ट्रपति की शक्तियॉ या कार्यः- भारत के राष्ट्रपति को संघ की कार्यपालिका का प्रधान माना जाता है। भले ही उनकी शक्तियों का उपभोग प्रधान मंत्री के द्वारा किया जाता हो। भारत के संविधान के अनुसार राष्ट्रपति अपनी शक्तियो का प्रयोग या अपने प्रतिनिधी के माध्यम से कर सकता है। राष्ट्रपति की शक्तियो को दो वर्गों में बॉटा गया है।


1. सामान्य शक्तियॉ

2. संकटकालीन शक्तियॉ


सामान्यकालीन शक्तियों में राष्ट्रपति की शक्तियो को 3 वर्गो में बॉटा गया हैं।


(1) कार्यपालिक शक्तियॉ

(2) विधायी शक्तियॉ

(3) वित्तीय शक्तियॉ

(4) न्यायिक शक्तियॉ


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1) कार्यपालिक शक्तियॉः- कार्यपालिक शक्तियों को प्रशासनिक शक्तियों के माध्यम से भी जाना जाता है।  कार्यपालिक शक्तियों को हम निम्न प्रकार से भी समझ सकते हैं।


अ. नियुक्तियॉः- राष्ट्रपति द्वारा देश के अनेेक महत्वपूर्ण पदों की पूर्ति हेतु अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है। भारत के राष्ट्रपति के द्वारा प्रमुख रूप से राज्यपाल, प्रधानमंत्री उच्चतम व उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, मुख्यच निर्वाचन आयुक्त आदि की नियुक्ति की जाती है। इसके साथ ही सभी आयोगों के अध्यक्षों एवं सदस्यों की नियुक्ति का महत्वपूर्ण कार्य राष्ट्रपति के द्वारा ही किया जाता हैं।


ब. वैदेशिक क्षेत्र में शक्तिः- भारत के राष्ट्रपति के द्वारा वैदेशिक मामलों में भारत के प्रतिनिधी के रूप में कार्य किया जाता है। भारत के राष्ट्रपति के द्वारा विदेशों में भारत के राज्यदूतों, उच्चायुक्त आदि की नियुक्तियॉ की जाती है। साथ ही भारत के राष्ट्रपति केे माध्यम से अन्य देशों के मध्य संधियों एवं समझौतो को किया जाता है साथ ही विवादों का निपटान किया जाता है।


स. सैनिक शक्तिः- भारत का राष्ट्रपति भारत की प्रमुख तीनो सेनाओं ( वायु, थल, नौसैना ) का प्रधान अध्यक्ष होता है। 


2) विधायी शक्तियॉः- भारत के राष्ट्रपति की प्रमुख विधायी शक्तियों मे विधायी क्षेत्र का प्रशासन, विशेष प्रतिवेदनों का राष्ट्रपति के द्वारा प्रस्तुत किया जाना।, राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति एवं विधी निर्माण में स्वीकृति आदि हैं।


  राष्ट्रपति के द्वारा ही संसद के दोनों सदनों की बैठक बुलाई जाती है। विवाद की स्थिति मे बैठक को स्थगित किया जाता है। नव वर्ष पर दोनों सदनो की बैठको को संबांधित करना आदि कार्य करता है साथ ही कुछ ऐसे प्रतिवेदन होते हैं जो मात्र राष्ट्रपति के माध्यम से ही सदन में प्रस्तुत किये ज ा सकतें हैं जैसे ( बजट, वित्त आयोग की संस्तुयॉ, महालेखा परिक्षक की रिपोर्ट आदि ) को प्रस्तुत किया जाता है । इसके अतिरिक्त किसी भी विशेष प्रकार के विधेयक को संसद में प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति की  स्वीकृति अनिवार्य होती है। विशेष प्रतिवेदनो में राज्यों का पूर्नगठन, धन विधेयक तथा भारत के कोषों से धन को निकालनें सबंधित विधेयक होतें है।। इसके अतिरिक्त कोई भी विधेयक तब तक विधी का रूप नहीं ले सकता जब तक उस पर भारत के राष्ट्रपति के हस्ताक्षर नहीं हो जाते है।


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          राष्ट्रपति के द्वारा सामान्यतः विधेयक को स्वीकृत कर लिया जाता है किंतु कई बार राष्ट्रपति विधेयक को पूनः संसद को पूनर्विचार हेतु भेज सकता है। यदि इस बार संसद विधेयक को पारित कर राष्ट्रपति के समक्ष हस्ताक्षर हेतु भेज देती है। तो राष्ट्रपति के द्वारा विधेयक पर हस्ताक्षर करना अनिवार्य हो जाता है।


  राष्ट्रपति को राज्यसभा के 12 सदस्यों का मनोनयन करनें का भी अधिकार प्राप्त होती है। राष्ट्रपति ऐसे 12 सदस्यों को मनोनित करता है जो विज्ञान, कला, साहित्य, समाजसेवा, तकनीकि आदि क्षेत्रों में विशेष योग्यता अथवा प्रविणता प्राप्त हो।


  इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति किसी महत्वपूर्ण विषय पर विधी निर्माण हेतु अध्यादेश जारी कर सकता है जब विधी निर्माण करना अनिवार्य हो जाता हैं।


3.) वित्तीय शक्तियॉः- भारत के राष्ट्रपति को वित्तीय शक्तियॉ प्राप्त है जिसके द्वारा राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के आरंभ में संसद के दोनों सदनो के समक्ष पुरे वर्ष का आय व्यय का ब्यौरा प्रस्तुत करवा सकता हैै।


4.) न्यायिक शक्तियॉः- भारत के राष्ट्रपति को अनुच्छेद 72 के अंतर्गत क्षमादान का अधिकार दिया गया है। वह किसी भी व्यक्ति जो मृत्यु दण्ड से दण्डित है कि सजा को कम कर सकता है।


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2. संकटकालीन शक्तियॉः-


(अ) युद्ध व बाहय् आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के संदर्भ में शक्तिः- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के अनुसार यदि राष्ट्रपति को ऐसा प्रतित होता है कि भारत को या उसके किसी क्षेत्र विशेष को बाहरी आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह या इसकी संभावना का खतरा है तो राष्ट्रपति पुरे भारत या उसके किसी विशेष भाग में आपातकाल की घोषणा कर सकता हैंें। इसके लिए मंत्रि परिषद की लिखील स्वीकृति अनिवार्य होती है।


(ब) राज्यों के संवैधानिक तंत्र की विफलता में संकटकालीन शक्तिः- भारत के राष्ट्रपति को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार ऐसा प्रतित होता है या राज्यपाल की रिपोर्ट प्राप्त होती है कि संबंधित राज्य संवैधानिक तंत्र के अनुसार चलाया जाना संभव नहीं है तो राष्ट्रपति संबंधित राज्य में आपात स्थिति या राष्ट्रपति शासन को लागु कर सकता है।


(स) वित्तीय संकटः- भारतीय संविधान में वर्णीत अनुच्छेउ 360 के अनुसार राष्ट्रपति को ऐसा आभास होता है कि भारत या उसके किसी भी भाग की वित्तीय साख को खतरा है तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति आपातकाल या राष्ट्रपति शासन को लागु कर सकता है।


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