व्यवस्थापिका किसे कहते हैं व्यव्स्थापिका केे कार्य राज्यसभा का गठन, शक्तियां एवं कार्य
"knowldege with ishwar"
व्यवस्थापिका
व्यवस्थापिका वह व्यवस्था होती है जिसके द्वारा कानुनों का निर्माण किया जाता है। कानुनों में संशोधन किया जाता हैं व जनता के लिए जनकल्याणकारी कार्यों का क्रियान्वन किया जाता है। सामान्य रूप से व्यवस्थापिका संगठन दो प्रकार से होता हैं। यदि व्यवस्थापिका में मात्र एक ही सदन होता है तो इसे एकसदनात्मक व्यवस्थापिका कहतें हैं । परंतु यदि व्यवस्थापिका में दो सदन होतें हैं तो यह द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका कहलाती हैं।
भारत की व्यवस्थापिका द्विसदनात्मक है यहां व्यवस्थापिका का गठन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुरूप राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्य सभा के द्वारा हुआ है। राष्ट्रपति संसद का एक हिस्साा होता है। सामान्य रूप से संसद में निर्मीत कोई भी विधेयक तभी कानुन का रूप धारण करता है। जब राष्ट्रपति इसे स्वीकृत कर अपने हस्ताक्षर कर दे। यदि किसी समय संसद का सत्र नहीं चल रहा हो एवं आवश्यकता हो तो राष्ट्रपति आवश्यकतानुसार अध्यादेश जारी कर सकता है। भारत की व्यवस्थापिका को संसद कहा जाता है। भारत का संसद भवन दिल्ली में स्थित हैं।
व्यवस्थापिका वह व्यवस्था है जिसके द्वारा नागरिकों की इच्छाओं को वास्तविकता में परिणीत किया जाता है। नागरिको की आशाओं और आकांशाओं को जीवंत रूप प्रदान किया जाता हैं।
व्यवस्थापिका किसे कहते हैं व्यव्स्थापिका केे कार्य राज्यसभा का गठन, शक्तियां एवं कार्य
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व्यवस्थापिका के कार्यः
1. कानून- का निर्माणः-
व्यवस्थापिका शासन को सुगमता से संचालित करने व देश की प्रगति व लोक कल्याणकारी कार्यों को क्रियान्वित करनें के लिए कानूनों का निर्माण करती है।
2.संविधान में संशोधनः-
व्यवस्थापिका के द्वारा समय समय पर परिस्थितियों के अनुसार संविधान में संशोधन भी किया जाता हैं।
3. प्रशासनिक कार्यः-
कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है। समस्त प्रशासनिक कार्यों का नियंत्रण व्यवस्थापिका के द्वारा ही किये जाते हैं।
4. धन संबंधी कार्यः-
शासन की योजनाओं के लिए आवश्यक धन की पूर्ति हेतु करों को लगाकर धन की व्यवस्था व्यवस्थापिका के द्वारा ही की जाती है। वहीं करों को कम अथवा समाप्त व्यवस्थापिका के द्वारा ही की जाती हैं। करों से प्राप्त धन को लोक कल्याणकारी कार्यों में व्यय किया जाता हैं।
5. चुनाव संबंधी कार्यः-
व्यवस्थापिका चुनाव संबंधी महत्वपूर्ण कार्य करती है। आमतौर पर राष्ट्रपति का निर्वाचन राज्य की विधान सभाओं व व्यवस्थापिका के सदस्यों के द्वारा किया जाता हैं।
6. विदेशी नीति का निर्धारणः-
व्यवस्थापिका के द्वारा ही देश की विदेश नीति का निर्धारण किया जाता है। दूसरे देशों के साथ होने वाली संधी समझौते या अंतर्राष्ट्रीय वार्ताओं में व्यवस्थापिका की स्वीकृति अनिवार्य होती है। इसी के साथ युद्व की स्वीकृति भी व्यवस्थापिका के द्वारा प्रदान की जाती है।
7. समितीयों व आयोगों का गठनः-
व्यवस्थापिका के द्वारा जटिल मामलों व परिस्थियों के निराकरण के लिए समितीयांे व आयोगों का गठन किया जाता है व इनके अध्यक्ष व अधिकारांे को नियुक्त किया जाता हैं।
8. न्यायिक कार्यः-
व्यवस्थापिका के द्वारा ही राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया लगाई की जाती है। कई देशों में व्यवस्थापिका न्यायिक कार्य भी करती हैं।
9. विचार विमर्श:-
व्यवस्थापिका के द्वारा ही सदन में प्रस्तुत विषयों व प्रस्तावों पर विस्तार से विचार विमर्श किया जाता है। गहन विचार विमर्श के पश्चात ही कोई कानुन का निर्माण किया जाता है। कानूनों का निर्माण करते समय व्यवस्थापिका सुक्ष्मता से पक्ष व विपक्ष दोेनो पहलुओं पर विचार विमर्श करती है।
10 राज्य व शासन संबंधी कार्यः-
राज्य की नीतियों का निर्धारण करवानें का कार्य एवं राज्य का मार्गदर्शन व्यवस्थापिका के द्वारा ही किया जाता हैं।
व्यवस्थापिका किसे कहते हैं व्यव्स्थापिका केे कार्य राज्यसभा का गठन, शक्तियां एवं कार्य
राज्यसभाः-
राज्यसभा संसद या व्यवस्थापिका को उच्च सदन कहलाता हैं। राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 होती है जिसमें से 238 सदस्य निर्वाचन प्रक्रिया के द्वारा निर्वाचित होकर के आतें हैं जबकि 12 सदस्यों को राष्ट्रपति के द्वारा मनोनित किया जाता है। जिन 12 सदस्यों का मनोनयन राष्ट्रपति के द्वारा किया जाता है। ये 12 सदस्य खेल,कृषि, साहित्य, कला, विज्ञान, आर्थीक व राजनीतिक मामलों , सांस्कृतिक मामलों, सामाजिक सेवा आदि से संबंधित विद्वान व अनुभवी व्यक्ति होतें हैं। राज्यसभा का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है। वर्तमान राज्यसभा के सदस्यों की संख्या 245 है।
राज्यसभा की निर्वाचन प्रक्रियाः-
राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधीत्व के आधार पर एकल संक्रमणीय मत पद्धति के द्वारा किया जाता है।
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राज्यसभा के सदस्यों के लिए योग्यताएं या अर्हतांएः-
1. वह भारत का नागरिक होना चाहिए।
2. उसकी न्युन्तम आयु 30 वर्ष हो।
3. वह किसी भी शासकीय सेवा के पद पर न हो या किसी भी शासकीय सेवा के पद का लाभ न ले रहा हो।
4. वह पागल न हो एवं किसी भी न्यायालय द्वारा दिवालीया घोषित न किया गया हो।
5. वह संसद के द्वारा निर्धारित की गई अन्य योग्यतांए व अर्हताएं रखता हो।
कार्यकाल व पदाधिकारी:-
राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है। चूंकि राज्यसभा एक स्थायी सदन होता है अतः इसे भंग नही किया जा सकता है। प्रत्येक दो वर्ष में राज्यसभा के एक तिहाई सदस्यों का कार्यकाल पूर्ण हो जाता है तथा वे सेवा निव्रत्त हो जाते हैं। वहीं भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। राज्यसभा के बैठकों का संचालन पदेन सभापति के द्वारा किया जाता हैं।
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व्यवस्थापिका किसे कहते हैं व्यव्स्थापिका केे कार्य राज्यसभा का गठन, शक्तियां एवं कार्य
राज्यसभा की शक्तियॉ व कार्यः-
1. विधायी शक्तियॉः-
राज्यसभा को लोकसभा के समान ही विधि का निर्माण करनें की शक्ति प्राप्त होती है। साधारण विधेयक को लोकसभा या राज्य सभा किसी में भी प्रस्तुत किया जा सकता है। किसी एक सदन द्वारा पारित विधेयक अन्य दूसरे सदन द्वारा संशोधित या रद्द भी किया जा सकता है। इस प्रकार राज्यसभा को विधि या कानून का निर्माण करनें व संशोंधित करनें का अधिकार प्राप्त होता हैं।
2. वित्तीय शक्तियॉः-
राज्यसभा के पास वित्तीय शक्तियॉ नाममात्र की होती है। राज्य सभा धन संबंधी निर्णय नहीं ले सकती है। सामान्य तौर पर धन विधेयक लोकसभा में पारित किये जाते हैं। धन विधेयक लोकसभा में पारित होने के बाद राज्यसभा की सिफारिशों के लिए भेजा जाता है। राज्यसभा धन विधेयक में किसी भी प्रकार का कोई भी संशोधन नहीं कर सकती है। राज्यसभा को सामान्यतया 14 दिनों के भीतर धन विधेेयक को पारित कर सिफारिशों के साथ लोकसभा को लौटाना होता है। लोकसभा राज्यसभा के धन विधेयक संबंधी सिफारिशों को मानने के लिए बाध्य नहीं होती है। इस प्रकार धन विधेयक में राज्यसभा की वित्तीय शक्तियॉ मात्र सलाह मशवरा के लिए ही हैं।
3. प्रशासन संबधी शक्तियॉः-
राज्यसभा विभिन्न विभागों के मंत्रियों से उनके विभागों के संबंध में प्रश्न पुछ सकतें हैं एवं इस संबंध मे अपनी टिप्पणी भी कर सकते हैं किंतु प्रशासन संबधी शक्तियॉ राज्यसभा के पास लोकसभा की तुलना में कम होती है।
4. संविधान में संशोधन संबंधी शक्तियॉः-
राज्यसभा के पास संविधान में संशोधन करनेे संबंधी शक्तियॉ प्राप्त होती है। राज्यसभा में संशोधन संबंधी प्रस्ताव प्रस्तुत किये जा सकते हैं। कोई भी संशोधन प्रस्ताव दोनों सदनों की स्वीकृति के पश्चात ही राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु भेजा सकता है।
5. महाभियोग प्रक्रियाः-
राज्यसभा को लोकसभा के समान ही राष्ट्रपति पर महाभियोग चलानें की शक्तियॉ प्राप्त होती है।
6. राष्ट्रपति का निर्वाचनः-
राज्यसभा को राष्ट्रपति का निर्वाचन करनें व राष्ट्रपति को चुनने की शक्ति प्राप्त होती है।
7. आपात उदघोषणाओं में स्वीकृतिः-
राष्ट्रपति द्वारा लागु की गई किसी भी आपात स्थिति या आपात उदघोषणाओ में दोनों सदनों की अनुमति अनिवार्य होती है।
8. विशेष शक्तियॉः-
राज्यसभा को कुछ विशेष शक्तियॉ भी प्राप्त है जो लोकसभा को प्राप्त नहीं है। इस पकार राज्यसभा ऐसा आश्य प्रस्ताव पारित कर सकती है कि संसद को ऐसे विषय पर भी कानून बनाना चाहिए जो राज्य सूची में वर्णीत हो।
इस प्रकार राज्यसभा उच्च सदन या द्वितीय सदन होता हैै यह एक कमजोर सदन होता है। परंतु विधी निर्माण संबंधी महत्वपूर्ण शक्त्यिॉ इसके पास होती है।
1 टिप्पणियाँ
बहुत बढ़िया
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