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विधानसभा के गठन ,कार्य एवं शक्तियां vidhan sabha ke karya

विधानसभा किसे कहते हैं


विधानसभा के  गठन ,कार्य एवं शक्तियां vidhan sabha ke karya 


"knowldege with ishwar"


नमस्कार दोस्तो आपका हमारे ब्लॉग पर स्वागत है दोस्तो जैसा कि आप एक उद्देश्य ओर जिज्ञासा लेकर हमारे ब्लॉग में आयें है तो हम आपके उद्देश्य या जिज्ञासा की सन्तुष्टि करने का पूर्ण प्रयास करेगे।


दोस्तों आज के हमारे इस आर्टिकल में आज हम विधानसभा से जुडी प्रमुख जानकारीयों का विस्तृत रूप से वर्णन करने वाले है ताकि  आप विधानसभा से पूर्ण रूप से परिचित हो जाये।


तो दोस्तों सबसे पहले हम यह जान ले कि आखिर विधानसभा होती क्या है ?


राज्यों की व्यवस्थापिका


राज्यों की व्यवस्थापिका को विधान मण्डल के नाम से जाना जाता है। विधानमण्डल दो प्रकार की होती हैं विधान सभा तथा विधान परिषद। जिस प्रकार संसद का अभिन्न अंग राष्ट्रपति होता है ठिक उसी प्रकार राज्य के विधानमण्डल का राज्यपाल अभिन्न अंग होता है। वही समय समय पर बैठकों को बुलाता है। विधानमण्डल किसी राज्य में एकसदनात्मक तो कहीं पर द्विसदनात्मक भी होता है। जम्मुकश्मीर, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, बिहार जैसे राज्यों में विधानमण्डल द्विसदनात्मक है। इसके अतिरिक्त सभी राज्यों में एकमात्र विधानसभा ही सदन होती हैं।


अतः जिस प्रकार से संसद केंद्र के लिए कानूनों ओर विधेयकों को पारित करती है ठीक उसी प्रकार से किसी भी राज्य की विधायिका या विधानमंडल या विधानसभा ओर विधान परिषद उस राज्य के विकास और सुदृढ़ कानून व्यवस्था के लिए कानूनों का निर्माण करती है।


विधानसभा:-


जिस प्रकार से केंद्र में लोकसभा होती है ओर केंद्र अर्थात देश के लिए विधि का निर्माण करती है ठीक उसी प्रकार राज्यों में विधानसभा होती है। विधानसभा किसी भी राज्य का निम्न सदन होता है । जो राज्यों में विधी का निर्माण कर कानून व्यवस्था को सुदृढ़ करती है।


विधानसभा का गठन


राज्यों की विधानसभा के गठन का उल्लेख सविंधान के अनुच्छेद 170 में किया गया है। राज्यों की विधान सभा का गठन या निर्माण जनता द्वारा प्रत्यक्ष मतदान के आधार पर निर्वाचित किये गये अपने प्रतिनिधीयों से होता है। विधानसभा के सदस्यों की संख्या अधिकतम 500 से अधिक तथा 60 से कम नहीं होनी चाहिए। 

लेकिन गोवा(40), मिजोरम(40),सिक्किम (32) की सदस्य संख्या 60 से कम होने से ये इसके अपवाद है।


विधानसभा की बैठक के लिए कुल सदस्य संख्या की 1/10 सदस्यों के बहुमत की आवश्यकता पड़ती है , तब जाकर बैठक बुलाई जा सकती है। साथ ही साथ वर्ष में 2 बार विधानसभा की बैठक बुलाई जानी आवश्यक होती है।


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सदस्य व पदाधिकारीः- 


राज्यों की विधानसभाओं के पदाधिकारी में अपना एक अध्यक्ष होता है। साथ ही विधानसभा के द्वारा उपाध्यक्ष को भी चुना जाता है। विधानसभा के पदाधिकारों को प्रस्ताव पारित कर उस पर बहुमत कर यदि प्रस्ताव पारित हो जाता है तो उन्हें अपनें पदो  से मुक्त भी किया जा सकता है।  विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, लेकिन जम्मू कश्मीर राज्य में विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है। इससे पूर्व त्याग पत्र के माध्यम से कोई भी सदस्य या पदाधिकारी अपने पद से मुक्त हो सकता है। विधानसभा का अध्यक्ष अपना त्यागपत्र उपाध्यक्ष को तथा उपाध्यक्ष अपना त्यागपत्र अध्यक्ष को सौंपता है। विधानसभा की अधिकतम संख्या 552 होती है।


राज्यपाल के द्वारा विधानसभा के 1 सदस्य का मनोनयन आंगला भारतीय समुदाय से किया जा सकता है।



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सदस्यों की योग्यताः


विधानसभा का सदस्य बनने हेतु कुछ अनिवार्य शर्तों या योग्यता या अर्हताओं का होना आवश्यक है जो निम्न हैः-


1. वह भारत का नागरिक हो। 

2. वह विधानसभा के सदस्य हेतु निर्धारित 25 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।

3. वह किसी भी सरकारी लाभ के पद पर कार्यरत न हो।

4. वह न्यायालय द्वारा पागल या दिवालिया घोषित न किया गया हो।

5. वह विधानसभा हेतु निर्धारित की गई अन्य योग्यतांए रखता हो।



विधानसभा का अध्यक्षः-


विधानसभा के अध्यक्ष को स्पीकर के नाम से भी जाना जाता है। विधानसभा की समस्त कार्यवाहियों का संचालन स्पीकर या अध्यक्ष के द्वारा ही किया जाता है। विधानसभा के सभी सदस्य अध्यक्ष की बात माननें के लिए बाध्य होते हैं।


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विधानसभा के स्पीकर या अध्यक्ष के कार्यः-


1. प्रश्नों की स्वीकृतिः- अध्यक्ष के द्वारा ही सदन में सदस्य को प्रश्न पुछने एवं प्रस्तावों को रखने की अनुमति दी जाती है।


2. बैठकों की अध्यक्षताः- विधानसभा के अध्यक्ष के द्वारा विधानसभा की कार्यवाहियों व बैठकों की अध्यक्षता की जाती है।


3. समय निर्धारणः- विधानसभा अध्यक्ष सदन में विभिन्न कार्यवाहियों व प्रस्तावों हेतु समय व क्रम का निर्धारण करता है।


4. मतदानः- विधानसभा के स्पीकर के द्वारा ही विधेयकों का प्रस्तुतीकरण, प्रस्तुत विधेयकों पर विचार विमर्श, तथा मतदान करवाया जाता है। प्रस्तुत विधेयको पर मतदान के पश्चात विधेयक के मतदान परिणाम की घोषण करता है। मतों में समानता की स्थिति में अपना निर्णायक मत देता है।


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5. शांति व सुव्यवस्थ बनाए रखनाः- विधानसभा के अध्यक्ष के द्वारा सदन में शांति, सुव्यवस्था व अनुशासन बनाए रखने का प्रयास किया जाता है। अध्यक्ष अमर्यादित भाषा पर रोक लगाता है। साथ ही विवाद की स्थिति उत्पन्न होने पर सदन को स्थगित भी कर सकता है।


6. धन विधेयकः- विधानसभा के अध्यक्ष क द्वारा यह निश्चित किया जाता है कि कोई सा भी विधेयक धन विधेयक है या नही।


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विधानसभा की शक्तियॉ या कार्यः-


1. विधायी शक्तियॉः- 


राज्य की विधानसभा को विधी का निर्माण करनें की शक्ति प्राप्त है।  विधानसभा राज्य सूचि मे वर्णित किसी भी विषय पर कानूनों का निर्माण कर सकती है। साथ ही समवर्ती सूची में वर्णीत विषयों पर कानून का निर्माण कर सकती हैं।


2. धन संबंधी शक्तियॉः-


धन विधेयक संबंध में विधानसभा को वही शक्तियॉ प्राप्त है जो लोकसभा को प्राप्त हैं। यहॉ धन संबंधी विधेयकों में विधानसभा का एकछत्र अधिकार प्राप्त है। धन संबंधी विधेयकों में राज्य परिषद की शक्ति न के बराबर हैं। विधानसभा में ही धन विधेयक को प्रस्तुत किया जा सकता है। प्रस्ताव पारित होने के पश्चात राज्य परिषद को सिफारिश हेतु भेजा जाता है किंतु राज्य परिषद को 14 दिनों के भीतर विधेयक को विधानसभा में लौटाना होता है। राज्य परिषद इसमें कोई संशोधन नहीं कर सकती हैं।


3. प्रशासनिक शक्तियॉः-


प्रशासन में विधानसभा काफी शक्तिशाली होता है। मंत्रिपरिषद विधानसभा के प्रति सामुहिक रूप से उत्तरदायित्व का निर्वहन करती है। विधान सभा प्रश्न पुछकर या स्थगन प्रस्ताव या कार्यों की सूचना मॉगकर या कार्यों की आलोचना कर मंत्रिपरिषद या कार्यपालिका पर नियंत्रण रख सकती है। अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर मंत्रिपरिषद को सामुहिक रूप से अपने पद से त्यागपत्र देना होता है।


4. अन्य शक्तियॉः- 


इसके महत्वपूर्ण अनुच्छेदों में परिवर्तन या संशोधन करने पर विधानसभाओं की स्वीकृति या सहमति महत्वपूर्ण हो जाती हैं। साथ ही विधानसभा को राष्ट्रपति के निर्वाचन में मतदान करनें व राष्ट्रपति को चुननें का अधिकार प्राप्त होता हैं।


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