मौलिक अधिकार किसे कहते हैं, molik adhikaron ke prakar
"knowldege with ishwar"
मौलिक अधिकारः-
संविधान के द्वारा नागरिको को अपने सर्वोंगीण विकास के लिए जो अधिकार प्रदान किये गये हैं वे ही मौलिक अधिकार कहलातें हैं । मौलिक अधिकार वे होतें हैं जो संविधान द्वारा प्रदत्त हाते हैं और जिनका हनन होने पर व्यक्ति सर्वोच्च न्यायालय की शरण ले सकता है।
भारत के संविधान में मौलिक अधिकारों को अमेरिका के संविधान से लिया गया है। मौलिक अधिकारों का वर्णन भारतीय संविधान के भाग 3 में किया गया है। मौलिक अधिकारों को भारतीय संविधान का मैग्नाकार्टा भी कहा जाता है।
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मौलिक अधिकारों के प्रकारः-
1. समानता का अधिकारः-
नागरिकों के मौलिक अधिकारों में समता या समानता के अधिकार को भी जोडा गया है। समता का अधिकार का अर्थ यह है कि भारत का प्रत्येक नागरिक राज्य की दृष्टि से समान है। समता के अधिकार को संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 14 से 18 तक समावेश किया गया हैं। समता के अधिकार के तहत भारत के प्रत्येक नागरिक को कानून के समक्ष समानता, सामाजिक समानता, अवसर की समानता, अस्पृश्यता का अंत, उपाधियो या विशेषाधिकारों का अंत आदि अधिकार प्राप्त है।
इस प्रकार भारत के प्रत्येक नागरिक को कानून के समक्ष समान माना जायेगा, उसके साथ जाति धर्म संप्रदाय आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा। साथ ही भारत के प्रत्येक नागरिक को सरकारी पदों पर नियुक्ति हेतु समान अवसर प्राप्त होंगें व संविधान द्वारा अस्पृश्यता या छुआछुत को अपराध मानते हुए अंत कर दिया है। भारत के सभी नागरिक को समान मानने व किसी के साथ कोई भेदभाव न करनें की दृष्टि से उपाधियो का अंत कर दिया गया है।
2 स्वतंत्रता का अधिकारः-
भारत के नागरिकों को स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्राप्त है। संविधान में नागरिकों के स्वतंत्रता के मुल अधिकारों का उल्लेख अनुच्छेद 19 से 22 तक किया है। संविधान के अनुसार नागरिको को विचार व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण जीवन जीने की स्वतंत्रता, राजनीतिक दल व संघ समुदाय बनानें की स्वतंत्रता, भ्रमण की स्वतंत्रता, निवास की स्वतंत्रता , व्यवसाय की स्वतंत्रता आदि प्राप्त है।
इस प्रकार भारत का प्रत्येक नागरिक अपने विचारों को अभिव्यक्त कर सकता है। संघ या राजनीतिक दल बना सकता है। वह देंश में कही भी आ जा सकता है। भ्रमण कर सकता है। देश के किसी भी भाग में निवास कर सकता है तथा अपना व्यापार कर सकता है। भारत के प्रत्येक नागरिक को शांतिपूर्ण जीवन जीने की स्वतंत्रता है।
नागरिकों के मुल अधिकार या मौलिक अधिकारः-nagriko ke mul adhikaron ka varnan kijiye
"knowldege with ishwar"
3. शोषण के विरूद्ध अधिकारः-
भारत के प्रत्येक नागरिक को शोषण के विरूद्ध अधिकार प्राप्त है। संविधान में शोषण के विरूद्ध अधिकार का उल्लेख संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 23 और 24 में उल्लेख किया गया है। इसके तहत मानव तस्करी पर रोक लगाई गई है। तथा शोषण को अपराध मानते हुए उसके खिलाफ दण्डात्मक कार्यवाही करनें का प्रावधान किया गया है। शोषण के विरूद्ध अधिकार के अनुरूप 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे को किसी भी होटल या कारखानों, खानों एवं अन्य जोखिम भरे कामों को करवाने पर रोक लगाई है तथा ऐसे स्थानों पर नाबालिग बच्चों को नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
4. धार्मीक स्वतंत्रता का अधिकारः-
भारत के किसी भी नागरिक के साथ धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा। भारत के प्रत्येक नागरिक को अंपने धर्म की उपासना करनें व उसका प्रचार प्रसार करने की स्वतंत्रता प्राप्त है। भारत के संविधान में धार्मीक स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लेख भाग 3 के अनुच्छेद 25 से 28 तक में किया गया है।
5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकारः-
भारत के प्रत्येक नागरिक को शिक्षा व संस्कृति संबंधी मोलिक अधिकार प्राप्त है। संविधान में अनुच्छेद 29 और 30 में इसका उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार देश के प्रत्येक नागरिक को अपनी भाषा लिपी व संस्कृति को सुरक्षित रखनें, व देश के सभी नागरिकों को प्राथमिक शिक्षा दिलाये जाने संबंधी अधिकारों का प्रावधान है।
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6. संवैधानिक उपचारों का अधिकारः-
संविधान में संवैधानिक उपचारों के अधिकार का उल्लेख अनुच्छेद 32 से 35 तक किया गया है। यह अधिकार सब मौलिक अधिकारों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। इस अधिकार के अनुसार उपरोक्त 5 अधिकार का हनन होता है तो नागरिक इस अधिकार का उपयोग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय की शरण ले सकता है।
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