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सामाजिक न्याय का अर्थ, सामाजिक न्याय की परिभाषा, सामाजिक न्याय की विशेषतांए, सामाजिक न्याय का महत्व, सामाजिक न्याय की आवश्यकता।

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सामाजिक न्याय का अर्थः-


सामाजिक न्याय से तात्पर्य यह है कि राज्य के द्वारा सभी व्यक्तियों को समान माना जाये किसी भी व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार का कोई भी भेदभाव नहीं किया जाये।



दूसरे शब्दों में सामाजिक न्याय एक विस्तृत अवधारणा होती है। इसमें सामाजिक कल्याण, समानता और समाज के आर्थिक विकास पर बल दिया जाता है। प्रसिद्ध विद्वान एल.टी. हॉबहाउस ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ’’द एलीमेंट ऑफ सोशल जस्टिस’’ में सामाजिक न्याय के तत्वो के बारे में उल्लेख किया है। उन्होंनें निम्नलिखित तत्व का वर्णन कियाः-


1.समाज के सदस्य के रूप में समानताः- सामाजिक न्याय से आश्य है कि किसी भी मनुष्य के बीच कोई भी भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। सभी को अपने विकास के लिए समान रूप से आवश्यक दशांए उपलब्ध कराई जानी चाहिए। कानुन के समक्ष सभी व्यक्ति समान होंगें। किसी भी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, लिंग, रंग, रूप, संपद्राय, भाषा, क्षेत्र आदि के आधार पर कोई भेदभाव नही किया जायेगा।


2. शोषण का निषेधः- सामाजिक न्याय का अर्थ यह है कि समाज में निहित वर्ग भेद को मिटा जाये । जात- पात, ऊंच निच आदि के द्वारा व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार का कोई शोषण नहीं किया जाये। सामाजिक न्याय के तहत शोषित व्यक्तियों का संरक्षण किया जाना चाहिए।


3. पिछड़े एवं कमजोर वर्गोें का शैक्षणिक एवं आर्थिक विकासः- सामाजिक न्याय के द्वारा उन व्यक्तियों के लिए विशेष कार्यक्रम किये जाने चाहिए जो आर्थिक विकास की दौड में कहीं पिछे छुट गयें थे। इसके लिए आवश्यक है कि कमजोर वर्गो के लिए विशेष प्रावधान जैसे आरक्षण आदि की व्यवस्था की जानी चाहिए।


4. अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षणः- सामाजिक न्याय के तहत अल्पसंख्यकों के हितों को संरक्षित किया जाये। अल्पसंख्यकों की भाषा, लिपी तथा संस्कृति की रक्षा राज्य द्वारा की जानी चाहिए। 


5. कार्य की यथोचित व मानवोचित दशांएः- सामाजिक न्याय के लिए आवश्यक है कि सभी व्यक्तियों को संास्कृतिक व आर्थिक विकास की दशांए उपलब्ध कराई जाये। स्वास्थय के स्तर को उपर उठाया जाना चाहिए तथा साथ ही शिक्षा हेतु विशेष प्रबंध भी किये जाने चाहिएं।


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सामाजिक न्याय की परिभाषाः-


1. न्यायधिश पी.वी. गजेन्द्र के गडकर के अनुसार- ’’सामाजिक न्याय का अर्थ सामाजिक असमानताओं को समाप्त करके सामाजिक क्षेत्र मे  प्रत्येक व्यक्ति को समान अवसर प्रदान करनें से हैं।’’


2. बार्कर महोदय के अनुसार- ’’ प्रत्येक व्यक्ति को उसके व्यक्तित्व के विकास के लिए पूर्ण सुविधांए उपलब्ध कराना और सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना ही सामाजिक न्याय है।’’


3. समाजवादियों के अनुसार- ’’प्रत्येक व्यक्ति को उसकी आवश्यकतानुसार सामाजिक सुविधांए उपलब्ध कराई जायें। इस प्रकार किसी के साथ भेदभाव न करना ही सामाजिक न्याय है।’’ 


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 सामाजिक न्याय की विशेषतांएः-


1. सामाजिक असमानता को हटानाः- सामाजिक न्याय के द्वारा सामाजिक असमानता को दूर किया जाता है। सामाजिक न्याय के द्वारा भारत में छुआछुत को समाप्त करनें का प्रयास किया गया है।सामाजिक न्याय के द्वारा उन व्यक्तियों को समकक्ष लाया जाता है। जो आर्थिक विकास में निचली सिढी पर है। सामाजिक न्याय के द्वारा पिछडे हुए व्यक्तियों को आर्थीक विकास की मुल धारा मे लाया जाता है।


2. सामाजिक व्यवस्था में सुधारः- सामाजिक न्याय के अंतर्गत व्यक्ति व्यक्ति में भेदभाव न करके सभी व्यक्तियों को विकास के समान अवसर उपलब्ध करायें जाते है।अतः समाज का संतुलति विकास ही सामाजिक न्याय की प्रमुख विशेषता है।


3. लोक-कल्याणकारी राज्य के आदर्शों के अनुकूलः- सामाजिक न्याय की एक विशेषता यह है कि यह लोक कल्याण कारी राज्य के आदर्शों के अनुकूल हैं। लोक कल्याणकारी राज्य में सभी नागरिकों के आर्थीक विकास पर बल दिया जाता है साथ ही लोक कल्याणकारी राज्य पिछडे़ वर्गों के लिए विशेष प्रावधान भी करता है।  इस प्रकार सामाजिक  न्याय लोक कल्याणकारी व्यवस्था के अनुकूल है।


4. विशेषाधिकारों की समाप्तिः- सामाजिक न्याय के अंतर्गत विशेषाधिकारों की समाप्ति कर दी गई है। सामाजिक न्याय के अंतर्गत राज्य के लिए सभी व्यक्ति समान हैं। किसी भी व्यक्ति के साथ जाति धर्म संप्रदाय आदि के आधार पर काई भेदभाव नहीं किया जायेगा। यही नहीं राज्य किसी भी जाति धर्म संप्रदाय व्यक्ति भाषा लिंग रूप रंग आदि को विशेष नहीं मानेगा।


5. पिछडे़ वर्गों हेतु विशेष सुविधांएः- सामाजिक न्याय के द्वारा पिछड़े वर्गों को आगे बढने के लिए राज्य द्वारा विशेष सुविधांए जैसे आरक्षण आदि उपलब्णर करायेगा।


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सामाजिक न्याय का महत्व व सामाजिक न्याय की आवश्यकताः-


1. सामाजिक समानता के लिएः- सामाजिक न्याय का प्रमुख लक्ष्य यह है कि व्यक्ति को सामाजिक स्तर पर एकसमान माना जाये,  किसी भी व्यक्ति में किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव न किया जाता हो। कानुन के समक्ष सभी को समान माना जाता है। इसी के साथ व्यक्ति को सभी के समान मानते हुए अस्पृश्यता आदि का भेदभाव न करते हुए अस्पृश्यता को समाप्त किया जाना चाहिए।


2. अवसर की समानताः- सामाजिक न्याय के अंतर्गत व्यक्ति को अवसर की समानता प्रदान की जाती है। साथ ही व्यक्तियों के प्रशिक्षण आदि सुविधांए उपलब्ध कराई जाती है।


3. व्यक्तित्व के विकास के लिएः- सामाजिक न्याय व्यक्तियों के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक है। व्यक्तियों के द्वारा बिना किसी भेदभाव के समान विकास के अवसर उपलब्ध कराये जाने चाहिए। जिससे सभी व्यक्तियों का समान विकास होता है।


4. सामाजिक सुधार के लिएः- सामाजिक न्याय के तहत कुरीतियों, अंधविश्वासो, रूढियों आदि का त्याग किया जाता है। समाज की उन्नति को प्रधानता दी जाती है। समाज मे अस्पृश्यता, बालविवाह, दहेजप्रथा, तस्करी आदि को दूर किया जाता है।


5. शांति और सुरक्षा की भावना का विकासः- समाजिक न्याय के कारण मिल जुलकर कार्य करनें की इच्छा जागृत होती है। जिससे समाज में शांति और सुरक्षा की भावना का विकास होता है।


6. लोकतंत्र का आधारः- न्याय के तीन प्रकार होते हैं-सामजिक, आर्थिक, राजनीतिक। इनमें समाजिक न्याय महत्वपूर्ण होती है। सामाजिक न्याय लोकतंत्र का मुलभूत आधार है। व्यक्ति समाज के सदस्य के रूप में ही तमाम कार्य संपन्न करता है।


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