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सौरमंडल के बारे में विस्तृत जानकारी-what is solar system

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सौरमंडल के बारे में विस्तृत जानकारी-what is solar system

  
नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है हमारी नयी ब्लॉग पोस्ट पर इस पोस्ट में हम आपको बताने वाले है सौरमंडल किसे कहतें है? सोरमंडल में कितने ग्रह है? सूर्य किसे कहतें है? आदि प्रश्नों तथा इनसे सबंधित सभी तथ्यों का विस्तार  से अध्ययन इस पोस्ट के माध्यम से करने वाले हैं तो दोस्तों इसके लिए आपको कुछ नहीं करना है। इस पोस्ट को आखीरी तक पढ़ना है। जिसे पढकर आपके सौरमंडल से रिलेटेड सभी concept क्लीयर हो जायेंगें।


तो दोस्तों शुरूआत करतें हैं आज की इस ब्लॉग पोस्ट के बारे में:-

1. सौरमंडल किसे कहतें हैं?


सूर्य सहित उसके समस्त आकाशीय पिण्डों के समूह को सौरमण्डल कहते हैं। सौर परिवार में सूर्य के अलावा ग्रह, उपग्रह, क्षुद्रग्रह, धुम्रकेतु, उल्कांए, तथा धुलकण आदी सम्मिलीत है। 

सौरमंडल के बारे में और विस्तृत विवरण इस प्रकार है।

1. सूर्य और उसके चारो और दीर्घवृत्ताकार कक्षा में परिभ्रमण करने वाले आठ ग्रहों 170 से ज्यादा उपग्रह एवं असख्य आकाशीय पिंडों (बोने ग्रहों, क्षुद्रग्रहों, उल्कांए आदि) के मंडल को सौरमंडल कहते हैं।

2. सूर्य का गुरूत्वाकर्षण बल और सौरमंडल का प्रमुख आकर्षण बल है। सूर्य के गुरूत्वाकर्षण बल के कारण अन्य सभी ग्रह व पिंड इसके चारो ओर परिक्रमा करते रहते हैं। सौर परिवार की गति सूर्य के द्वारा ही पुर्ण रूप से नियंत्रित होती है। 

3. सौरमंडल का 99.8 प्रतिशत द्रव्यमान सूर्य में निहित है।

4. हमारा सौरमंडल दुग्ध मेखला आकाशगंगा का भाग है। उसके क्रेद्र से 27000 प्रकाश वर्ष दुर है। 


दोस्तों अब हम जान लेते हैं सौरमंडल के पिण्ड के प्रकारः-

अंतर्राष्ट्रीय खगोलशास्त्रीय संघ जिसे अंग्रेजी में इंटरनेशनल एस्ट्रोनोमिकल युनियन Indian astronomical union या IAU कहा जाता है के द्वारा प्राग सम्मेलन 24 अगस्त 2006 को एक बैठक या सभा हुई जिसमें सौरमंडल में मौजुद पिण्डों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है। 

1.प्रधान या परंपरागत ग्रह या Major planets

इनकी संख्या 8 है। जिसमें बुध, शुक्र, प्रथ्वी, मंगल, ब्रहस्पति, शनि, अरूण या युरेनस, वरूण या नेप्च्युन  प्रमुख है। इसी सम्मेलन में प्लेटो को इन ग्रहों की सुची से निकाल दिया गया है।

2. बोने ग्रहः- यम (प्लेटो), एरीज, सेरस, हॉमिया, माकीमाकी प्रमुख बौने ग्रह है।

3. लघु सौरमंडलीय पिंडः‘-

लघु सौरमंडलीय पिंड 184 ज्ञात उपग्रह एवं अन्य छोटे खगोलिय पिंड जिसमें क्षुद्रग्रह, धुम्रकेतु, उल्कांए, बर्फीली क्वीपर पट्टी और ग्रहों के बीच की धुल व कण आदि शामिल है। 

2.  सूर्य sun:-


 sun सूर्यः-

1. सूर्य दुग्ध मेखला में स्थित एक तारा है। जो हाइड्रोजन के हिलीयम में नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया के द्वारा अपने कंेद्र में ऊर्जा उत्पन्न करता है। हेंस बेच ने बताया कि 107 डिग्री  के ताप पर सूर्य के केंद्र में चार हाइड्रोजन मिलाकर एक हिलीयम का निर्माण करते हैं।


2. सूर्य हमारे सौरमंडल का कंेद्र है जिसके चारो और हमारे सौरमंडल के आकाशीय पिंड परिभ्रमण करते हैं।

3. सूर्य अपने अक्ष पर पूर्व से पश्चिम की और घुर्णन करता है। 

4. सूर्य 25 करोड वर्ष या 250 मिलीयन वर्षो में हमारी आकाशगंगा की एक परिक्रमा पुरी करता है। सूर्य के इस परिक्रमण काल को ब्रह्मांड वर्ष या कॉस्मास कहा जाता है।

5. सूर्य की संरचना गैसीय व प्लाज्मा अवस्था में पदार्थ जिनमें हाइड्रोजन 74 प्रतिशत, हिलीयम 23 प्रतिशत और अन्य 2 प्रतिशत से मिलकर हुई है।

6. सूर्य से प्रथ्वी की दुरी 15 करोड़ प्रकाश वर्ष है। 

7. सुर्य के प्रकाश की चाल 3’108  है।

(sun)


Mass

2* 10.30 kg = 335,000 Earth masses

Diameter

1.4 million km= 109 Earth diameters

Density

1400  Kg/m3 (water has 1000 kg/m3)

Centre Temprature

    14 million degrees

surface Temprature

     5500˚c

Age

approximately 4600 million yrs.

Gravitational Force

     28 times of Earth


सूर्य की संरचनाः- सूर्य की संरचना को हम दो भागों में बांटकर अध्ययन कर सकते हैंः-


1. आंतरिक भाग

2. बाह्य भाग 

1. आंतरिक भाग में  कोर , विकिरण मेखला या संवहन मेखला को सम्मिलीत किया जाता है।

2. बाह्य भाग:- प्रकाश मंडल, वर्णमंडल तथा कोरोना या (सूर्य किरिट या सूर्य मुकुट) को इसमें सम्मिलीत किया जाता है।

सूर्य का केंद्र से बाहर की ओर क्रम इस प्रकार है

1. कोर

2. विकिरण मेखला

3. संवहन मेखला

4. प्रकाश मंडल

5. वर्णमंडल

6. कोरोना (सूर्य किरिट या सूर्य मुकुट)

आइये हम बारी बारी से सूर्य की संरचना के बारे में विस्तृत ज्ञान प्राप्त करतें हैं।


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2.1. कोर core :-



  • कोर का सर्वाधिक ताप व दाब होता है। सूर्य के केंद्र को कोर कहा जाता है।
  • इसका 1.5 - 107 और 15 मिलीयन डिग्री सेल्सियस तापमान है।
  •  सूर्य के कोर की कुल लंबाई- 170,000 किमी है।                                                                                                                   


2.2.  विकिरण मेखला या रेडिएटिव जोन :-


क. विद्युत चुंबकीय विकिरण के रूप में ऊर्जा स्थानांन्तरण होता है जो बाहर की ओर निकलती है।

ख. विकिरण मेखला की लंबाई 420,000 किमी होती है।


2.3.  संवहन मेखला या कनवेक्शन जोन 


अ. संवहन मेखला में सूर्य के पदर्थों में चक्रीय गति होती है। उनमें संवहन होता है इसीलिए इस भाग को संवहन मेखला के नाम से संबोधित किया जाता है।


आ. संवहन मेखला की कुल लंबाई - 105,500 किमी होती है। 


2.4.  प्रकाश मंडल या फोटोस्पेयर :-


क. सूर्यं के धरातल को फोटोस्पेयर कहा जाता है। यहां सुर्य के पदार्थो का संवहन होता है। 

ख. सूर्य की दिप्तीमान या दृश्यमान परत को प्रकाश मंडल कहा जाता है। प्रकाश मंडल के किनारे प्रकाशमान नहीं होते है क्योंकि  सूर्य का वायुमंडल प्रकाश को अवशोषित या ग्रहण कर लेता है। 

ग. प्रकाश मंडल या फोटोस्पेयर का तापमान - 6000 डिग्री सेल्सियस होता है।

घ. कणिका या ग्रीनल्स- सूर्य के प्रकाश मंडल में छोटे छोटे दाने पाये जातें है। जिसे कणिका या ग्रिनल्स कहा जाता है। 

ड़. सौर कलंक या सन स्पोट - सूर्य के प्रकाश मंडल में होने वाली अस्थायी घटनांए जो धब्बे के रूप में दिखाई देती है एवं साथ ही  फोटोस्पेयर पर काले, ठंडे धब्बे पाये जाते हैं जिसे  सौर कलंक कहा जाता है। 

 सौर कलंक की खोज गेलिलियो गेलेई के द्वारा की गई थी। 

 सौर कलंक का तापमान- 2700 डिग्री सेल्सियस से 4200 डिग्री सेल्सियस तक होता है।

 सौर कलंक जो सूर्य के धब्बे भी कहलाते हैं का एक पुरा चक्र 22 वर्षों का होता हैं। पहले 11 वर्षो तक यह धब्बा  बढ़ता है तथा बाद के 11 वर्षों में यह घटता है।  अतः इसकी अधिकतम 11 वर्ष होती है और ये 11 वर्ष के चक्र होते हैं। 
 जब सूर्य की सतह पर सौर कलंक दिखलाई पढ़ता है तब प्रथ्वी पर चुंबकीय झंझावत या मेग्नेटिक स्टोर्मस् उत्पन्न होते हैं। इससे चुंबकीय सूई की दिशा बदल जाती है रेड़ियो, टीवी, बिजली के द्वारा चलाई जाने वाली मशिनों में गडबड़ी उत्पन्न होती है। 

सूर्य कलंक के आंतरिक अधिक काले भाग को अम्ब्रा कहा जाता है तथा इसके बाहरी या अपेक्षाकृत कम काले भाग को पेन अम्ब्रा कहा जाता है।  ये ही प्रबल चुंबकीय विकिरण उत्सर्जित करतें हैं जिससे संचार व्यवस्था बाधित होती है। 

 सौर कलंक की खौज गैलीलियों ने की थी।



च. सौर तुफानः-

 सूर्य हाइड्रोजन और हिलीयम की नाभिकीय संलयन की अभिक्रियाओं के कारण सौर विकिरणों सौलर फलेयर्स और आवेशित किरणों के रूप में ऊर्जा का प्रवाह करता है। जिस कारण प्रबल चुंबकीय विकिरण उत्सर्जित होती है।  जो प्रथ्वी और उपग्रहों पर मोजुद विभिन्न इलेक्ट्रोनिक संचारों को बाधित करती है। 


2.5.  वर्ण मंडल या क्रोमोस्फेयर :-


 वर्ण मंडल या क्रोमोस्फेयर की लंबाई 2500 किमी तक होती है। 


1. वर्ण मंडल या क्रोमोस्फेयर का तापमान 6000 डिग्री सेल्सियस से 20000 डिग्री सेल्सियस तक होता है।

2. प्रकाशमंडल के किनारे दृश्यमान नहीं होते हैं क्योंकि सूर्य का वायुमंडल इसका अवशोषण कर लेता है जिसे वर्णमंडल या क्रोमोस्फेयर कहा जाता है। 

3. हाइड्रोजन के कारण यह लाल रंग का दिखाई देता है। 

4. यह पूर्ण सूर्य ग्रहण के समय दिखाई देता है। तब यह डायमंड की अंगुठी के समान दिखाई देता है। 


2.6.  सूर्य मुकुट या कोरोना :-


इसे सूर्य किरीट या परिमंडल भी कहा जाता है। यह सूर्य की सबसे बाहरी परत है। 

 


अ.  इसका तापमान 1 मिलीयन डिग्री सेल्सियस से 2 मिलीयन डिग्री सेल्सियस तक होता है। 

ब.   यह पूर्ण सूर्यग्रहण के समय दिखाई देता है। पूर्ण सूर्यग्रहण के समय सूर्य किरीट से प्रकाश की प्राप्ति होती है। कोरोना एक्स-रे किरणों का उत्सर्जन करता है।  




सौर ज्वालाः-

कभी प्रकाशमंडल या फोटोस्फेयर में सौर तुफान इतनी तेजी से निकलता है कि वह तुफान सूर्य की आकर्षण या गुरूत्वाकर्षण शक्ति को पार कर अंतरिक्ष में चला जाता है। इसे ही सौर ज्वाला कहा जाता है। 


दुसरे शब्दों में सौर ज्वाला  सौर कलंक के निकट चुंबकीय क्षेत्र की रेखाओं के स्पर्श, क्रासिंग या पूनगर्ठन के कारण सौर ज्वालाएं ऊर्जा का एक अचानक विस्फोट है। 


जब यह प्रथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करता है तो वायु के कणों से टकराकर इनमें रंगीन प्रकाश उत्सर्जित होता है। जो उत्तरी व दक्षिणी ध्र्रुव पर देखा जा सकता है। उत्तरी धु्रव पर इसे अरोरा बोरियालिस तथा दक्षिणी धु्रव पर इसे अरोरा आस्ट्रेलिस कहते हैं। 

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3.  अरोरा घटनांएः-


1. ओरोरा बोरीयलिसः- 

उत्तरी अक्षांशों की धु्रवीय ज्योति को सुमेरू ज्योति या उत्तर धु्रवीय ज्योति के नाम से जाना जाता है। 

2. ओरोरा आस्ट्रेलिस:-

दक्षिणी अक्षांशों की ध्रुवीय जयाोति को कुमेरू ज्योति या दक्षिण धु्रवीय ज्योति के नाम से जाना जाता है। 

दोस्तों वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन से यह ज्ञात किया है कि  अरोरा की घटनाओं की उत्पति का सबसे प्रमुख कारण इलेक्ट्रान  और प्लाज्मा के तरंगों के परस्पर से मिलने होती है। इलेक्ट्रान और प्लाज्मा की तरंगे प्रथ्वी के बाहरी वातावरण के 
मेग्नेटोस्फेयर में होती है। 

मेग्नेटोस्फेयर में आए परिवर्तन में खास प्रकार की प्लाज्मा की तरंगे बाहर निकलती है। इन तरंगों को कोरस तरंगों के नाम से जाना जाता है। 

ये तरंगें प्रथ्वी के बाहरी वातावरण में इलेक्ट्रोनों की बारिस करते हैं। जिस वजह से उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवों पर कई रंगों से लिप्त प्रकाश उत्पन्न होता है। जिसे हम अरोरा आस्टेलियस और अरोरा बोरियालिस के नाम से जानते है।

 4. महत्वपूर्ण सौलर मिशनः-

 

1- pioneer 5- March- Aprail 1960 (NASA)


2- Helios A ( NASA-DEVLR) November 1974-1982  northern germany


3- SOHO (NASA+ESA)-- May 1996- extend to December 2018- Investigation of sun's core, corona and sloar wind; comet discoveries.


4- Advanced composition Explorer (ACE+NASA)--- August 1997- project until 2024- solar wind observations.


5- Deep Space Climate Observatory (DSCOVR) from cap canaveral space center- Feb 2015 solar wind and coronal mass ejection monitoring, as well as earth climate monitoring.


6- Parker Solar Prabe ( Touch the mission) (NASA) - November 2018- December 2025 close range solar coronal study - it is part of NASA's 'living with a star' programme that explain diffrent aspeets of the sun-earth system.


7- Solar Orbiter (ESA) (NASA)- 10 February 2020 launched from cap canaveral space center



यह युनाईटेड लॉच अलांयस एटलस वी’ रॉकेट से भेजा गया इसे केप कैनेवरल स्पेस सेंटर से लांच किया गया ।


5. ग्रेप्स-3 


  1. ग्रेप्स 3 एक्सपेरिमेंट भारत के ऊटी में स्थापित एक विशेष प्रकार का टेलिस्कोप ऐरे है।


2. इसका प्रमुख उद्देश्य कॉस्मीक किरणों का अध्ययन तथा ब्रह्मांडीय किरणों से म्युऑन का पता लगाना है। 

3. ग्रेप्स 3 अभियान भारत और जापान का संयुक्त प्रयास है। जिसमें जापान की ओसाका सिटी यूनिवर्सिटी एवं नागोया वीमेंस यूनिवर्सिटी तथा भारत की टाटा इंस्टीटयुट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) सम्मिलीत है।

4. ग्रेप्स 3 भारतीयों के सहयोग के रूप में शुरू किया गया ।                             



6. लैग्रांजी बिंदु किसे कहते हैं?



लैग्रांजी बिंदुः- 


1. इस बिंदु का नाम जोसेफ लैग्रान्जे जो कि 18 वी सदी के गणितज्ञ थे, के नाम पर रखा गया है। 

2. लैग्रांजी बिंदु अंतरिक्ष में ऐसे स्थान है जां दो विशाल आकाशीय पिंडो या खगोलिय पिंडो जैसे प्रथ्वी या सूर्य या चंद्रमा या अन्य कोई खगोलिय पिंड पर लग रहे अपकेंद्रीय बल के बराबर है।

3. इन बिदुओं पर बलों का पारस्परिक प्रभाव एक संतुलन बिंदु उत्पन्न करता है। जहां किसी भी अंतरिक्ष यान को स्थापित करके या खड़ा करके आसानी से अवलोकन प्रक्षेपण किया जा सकता है।

4. प्रथ्वी और सूर्य के बीच ऐसे पांच बिंदु L-1, L-2, L-3, L-4, L-5 है।

5. लैगांजी बिंदु ब्रह्मांड में ऐसी जगह है। जहां चिजे स्थिर रहती है। इस बिंदु पर प्रथ्वी और सूर्य का गुरूत्वाकर्षण संतुलित रहता है।

लैग्रांजी बिंदु L-1 और प्रथ्वी के मध्य दूरी 15 लाख किमी है। 




7. आदित्य L-1 सूर्य का अध्ययन करने वाला प्रथम भारतीय मिशनः-


आदित्य L-1 सूर्य का अध्ययन करने वाला प्रथम भारतीय मिशनः- 

1. यह सूर्य का अध्ययन को समर्पित इसरो के द्वारा प्रतिस्थापित भारत का पहला वैज्ञानिक अंतरिक्ष मिशन या सौलर मिशन है।  आदित्य-1 की संकल्पना दृश्य उत्सर्जन रेखा प्रभामंडललेखी नामक पेलोड को ले जाने हेतु 400 किग्रा श्रेणी उपग्रह के रूप में किया गया था तथा उसे 800 किमी निम्न भूकक्षा में स्थापित करने की योजना व कार्यप्रणाली थी।

2. आदित्य एल-1 को 2020 में प्रक्षेपित किया गया।

3. सूर्य और प्रथ्वी के लेग्रांजी बिंदु के आसपास प्रभामंडल की कक्षा में स्थापित उपग्रह से मुख्य लाभ यह होता है कि इसे बिना किसी ग्रहण या आच्छादन के लगातार सूर्य को देखा जा सकता है। अतः आदित्य -1 को अब आदित्य एल-1 मिशन के रूप में संशोधित कर दिया गया है। 

4. यह सौर झंझावत की उत्पति व विकास एवं उनके द्वारा प्रयोग किये जाने वाले पथ को समझने में मदद करेगा। यह कोरोना था पर्यावरण पर सौर्य पवनों के प्रभावों को समझने व उनका अध्ययन करने में सहायता करेगा। 


8. एस्ट्रोसेट मिशनः- 



एस्ट्रोसेट मिशनः- 

1.  भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा खगोलिय पिंडों के अध्ययन के लिए पुरी तरह से समर्पित भारत के प्रथम अंतरिक्ष आधारित खगोलशाला।


2. ऐसा करने वाला भारत चौथा देश बन गया है। अभी तक अमेरिका रूस और जापान ने ही अंतरिक्ष वेधशाला को लांच किया है। 

3. एस्ट्रोसेट को प्रविी से 650 किमी की ऊॅचाई पर कक्षा में स्थापित किया गया ।

4. 28, सितंबर 2015 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्री हरिकोटा से पीएसएलवी सी-30 द्वारा प्रमोचित किया गया ।

5. एस्ट्रोसेट मिशन की अपेक्षित न्युन्तम उपयोगी कालावधि मात्र 5 वर्ष है। 

एस्ट्रोसेट मिशन के उद्देश्यः- 

एस्ट्रोसेट मिशन के उद्देश्यः- 

1. न्युट्रान तारा तथा ब्लैक हॉल शामिल करते हुए द्विविआधारी तारा प्रणाली में उच्च ऊर्जा प्रक्रियाओं को समझना।


2. न्यूट्रान तारे के चुंबकीय क्षैत्र का आकलन।

3. हमारी आकाशगंगा से परे स्थित तारा प्रणालियों में तारा उत्पति क्षैत्र तथा उच्च ऊर्जा प्रक्रियाओं का आकलन।

4. आकाश में नए संक्षिप्त चमकिले एक्स रे स्त्रोत का संसूचन।

5. पराबैंगनी क्षैत्र के ब्रह्मांड के सीमित गहन क्षेत्र सर्वेक्षण का निष्पादन। 


आशा करता हॅु दोस्तों आपको हमारे द्वारा बतायी गई जानकारी पसंद आयी होगी  और उम्मीद करता हॅु इस जानकारी को प्राप्त कर आप किसी भी परिक्षा में इस पोस्ट में बताये गये टॉपीक्स से संबंधित किसी भी प्रश्न का आसानी से जवाब दे पायेंगंे।

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