सौरमंडल के बारे में विस्तृत जानकारी-what is solar system
1. सौरमंडल किसे कहतें हैं?
2. सूर्य sun:-
sun सूर्यः- |
1. सूर्य दुग्ध मेखला में स्थित एक तारा है। जो हाइड्रोजन के हिलीयम में नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया के द्वारा अपने कंेद्र में ऊर्जा उत्पन्न करता है। हेंस बेच ने बताया कि 107 डिग्री के ताप पर सूर्य के केंद्र में चार हाइड्रोजन मिलाकर एक हिलीयम का निर्माण करते हैं। 2. सूर्य हमारे सौरमंडल का कंेद्र है जिसके चारो और हमारे सौरमंडल के आकाशीय पिंड परिभ्रमण करते हैं। 3. सूर्य अपने अक्ष पर पूर्व से पश्चिम की और घुर्णन करता है। 4. सूर्य 25 करोड वर्ष या 250 मिलीयन वर्षो में हमारी आकाशगंगा की एक परिक्रमा पुरी करता है। सूर्य के इस परिक्रमण काल को ब्रह्मांड वर्ष या कॉस्मास कहा जाता है। 5. सूर्य की संरचना गैसीय व प्लाज्मा अवस्था में पदार्थ जिनमें हाइड्रोजन 74 प्रतिशत, हिलीयम 23 प्रतिशत और अन्य 2 प्रतिशत से मिलकर हुई है। 6. सूर्य से प्रथ्वी की दुरी 15 करोड़ प्रकाश वर्ष है। 7. सुर्य के प्रकाश की चाल 3’108 है।
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(sun)
Mass |
2*
10.30 kg = 335,000 Earth masses |
Diameter |
1.4 million km= 109 Earth
diameters |
Density |
1400 Kg/m3
(water has 1000 kg/m3) |
Centre Temprature |
14
million degrees |
surface Temprature |
5500˚c |
Age |
approximately
4600 million yrs. |
Gravitational Force |
28
times of Earth |
सूर्य की संरचनाः- सूर्य की संरचना को हम दो भागों में बांटकर अध्ययन कर सकते हैंः-
सौरमंडल के बारे में विस्तृत जानकारी-what is solar system
2.1. कोर core :-
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2.2. विकिरण मेखला या रेडिएटिव जोन :-
क. विद्युत चुंबकीय विकिरण के रूप में ऊर्जा स्थानांन्तरण होता है जो बाहर की ओर निकलती है। ख. विकिरण मेखला की लंबाई 420,000 किमी होती है।
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2.3. संवहन मेखला या कनवेक्शन जोन
अ. संवहन मेखला में सूर्य के पदर्थों में चक्रीय गति होती है। उनमें संवहन होता है इसीलिए इस भाग को संवहन मेखला के नाम से संबोधित किया जाता है। आ. संवहन मेखला की कुल लंबाई - 105,500 किमी होती है।
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2.4. प्रकाश मंडल या फोटोस्पेयर :-
क. सूर्यं के धरातल को फोटोस्पेयर कहा जाता है। यहां सुर्य के पदार्थो का संवहन होता है। ख. सूर्य की दिप्तीमान या दृश्यमान परत को प्रकाश मंडल कहा जाता है। प्रकाश मंडल के किनारे प्रकाशमान नहीं होते है क्योंकि सूर्य का वायुमंडल प्रकाश को अवशोषित या ग्रहण कर लेता है। ग. प्रकाश मंडल या फोटोस्पेयर का तापमान - 6000 डिग्री सेल्सियस होता है। घ. कणिका या ग्रीनल्स- सूर्य के प्रकाश मंडल में छोटे छोटे दाने पाये जातें है। जिसे कणिका या ग्रिनल्स कहा जाता है। ड़. सौर कलंक या सन स्पोट - सूर्य के प्रकाश मंडल में होने वाली अस्थायी घटनांए जो धब्बे के रूप में दिखाई देती है एवं साथ ही फोटोस्पेयर पर काले, ठंडे धब्बे पाये जाते हैं जिसे सौर कलंक कहा जाता है। सौर कलंक की खोज गेलिलियो गेलेई के द्वारा की गई थी। सौर कलंक का तापमान- 2700 डिग्री सेल्सियस से 4200 डिग्री सेल्सियस तक होता है। सौर कलंक जो सूर्य के धब्बे भी कहलाते हैं का एक पुरा चक्र 22 वर्षों का होता हैं। पहले 11 वर्षो तक यह धब्बा बढ़ता है तथा बाद के 11 वर्षों में यह घटता है। अतः इसकी अधिकतम 11 वर्ष होती है और ये 11 वर्ष के चक्र होते हैं। जब सूर्य की सतह पर सौर कलंक दिखलाई पढ़ता है तब प्रथ्वी पर चुंबकीय झंझावत या मेग्नेटिक स्टोर्मस् उत्पन्न होते हैं। इससे चुंबकीय सूई की दिशा बदल जाती है रेड़ियो, टीवी, बिजली के द्वारा चलाई जाने वाली मशिनों में गडबड़ी उत्पन्न होती है। सूर्य कलंक के आंतरिक अधिक काले भाग को अम्ब्रा कहा जाता है तथा इसके बाहरी या अपेक्षाकृत कम काले भाग को पेन अम्ब्रा कहा जाता है। ये ही प्रबल चुंबकीय विकिरण उत्सर्जित करतें हैं जिससे संचार व्यवस्था बाधित होती है। सौर कलंक की खौज गैलीलियों ने की थी। |
2.5. वर्ण मंडल या क्रोमोस्फेयर :-
वर्ण मंडल या क्रोमोस्फेयर की लंबाई 2500 किमी तक होती है। 1. वर्ण मंडल या क्रोमोस्फेयर का तापमान 6000 डिग्री सेल्सियस से 20000 डिग्री सेल्सियस तक होता है। 2. प्रकाशमंडल के किनारे दृश्यमान नहीं होते हैं क्योंकि सूर्य का वायुमंडल इसका अवशोषण कर लेता है जिसे वर्णमंडल या क्रोमोस्फेयर कहा जाता है। 3. हाइड्रोजन के कारण यह लाल रंग का दिखाई देता है। 4. यह पूर्ण सूर्य ग्रहण के समय दिखाई देता है। तब यह डायमंड की अंगुठी के समान दिखाई देता है।
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2.6. सूर्य मुकुट या कोरोना :-
अ. इसका तापमान 1 मिलीयन डिग्री सेल्सियस से 2 मिलीयन डिग्री सेल्सियस तक होता है। ब. यह पूर्ण सूर्यग्रहण के समय दिखाई देता है। पूर्ण सूर्यग्रहण के समय सूर्य किरीट से प्रकाश की प्राप्ति होती है। कोरोना एक्स-रे किरणों का उत्सर्जन करता है। |
सौरमंडल के बारे में विस्तृत जानकारी-what is solar system
3. अरोरा घटनांएः-
4. महत्वपूर्ण सौलर मिशनः-
1- pioneer 5- March- Aprail 1960 (NASA)
2-
Helios A ( NASA-DEVLR) November 1974-1982
northern germany
3-
SOHO (NASA+ESA)-- May 1996- extend to December 2018- Investigation of sun's
core, corona and sloar wind; comet discoveries.
4-
Advanced composition Explorer (ACE+NASA)--- August 1997- project until 2024-
solar wind observations.
5- Deep Space Climate Observatory (DSCOVR) from cap canaveral space center- Feb 2015 solar wind and coronal mass ejection monitoring, as well as earth climate monitoring.
6-
Parker Solar Prabe ( Touch the mission) (NASA) - November 2018- December 2025
close range solar coronal study - it is part of NASA's 'living with a star'
programme that explain diffrent aspeets of the sun-earth system.
7-
Solar Orbiter (ESA) (NASA)- 10 February 2020 launched from cap canaveral space
center
5. ग्रेप्स-3
1. ग्रेप्स 3 एक्सपेरिमेंट भारत के ऊटी में स्थापित एक विशेष प्रकार का टेलिस्कोप ऐरे है। 2. इसका प्रमुख उद्देश्य कॉस्मीक किरणों का अध्ययन तथा ब्रह्मांडीय किरणों से म्युऑन का पता लगाना है। 3. ग्रेप्स 3 अभियान भारत और जापान का संयुक्त प्रयास है। जिसमें जापान की ओसाका सिटी यूनिवर्सिटी एवं नागोया वीमेंस यूनिवर्सिटी तथा भारत की टाटा इंस्टीटयुट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) सम्मिलीत है। 4. ग्रेप्स 3 भारतीयों के सहयोग के रूप में शुरू किया गया । |
6. लैग्रांजी बिंदु किसे कहते हैं?
लैग्रांजी बिंदुः- |
1. इस बिंदु का नाम जोसेफ लैग्रान्जे जो कि 18 वी सदी के गणितज्ञ थे, के नाम पर रखा गया है। 2. लैग्रांजी बिंदु अंतरिक्ष में ऐसे स्थान है जां दो विशाल आकाशीय पिंडो या खगोलिय पिंडो जैसे प्रथ्वी या सूर्य या चंद्रमा या अन्य कोई खगोलिय पिंड पर लग रहे अपकेंद्रीय बल के बराबर है। 3. इन बिदुओं पर बलों का पारस्परिक प्रभाव एक संतुलन बिंदु उत्पन्न करता है। जहां किसी भी अंतरिक्ष यान को स्थापित करके या खड़ा करके आसानी से अवलोकन प्रक्षेपण किया जा सकता है। 4. प्रथ्वी और सूर्य के बीच ऐसे पांच बिंदु L-1, L-2, L-3, L-4, L-5 है। 5. लैगांजी बिंदु ब्रह्मांड में ऐसी जगह है। जहां चिजे स्थिर रहती है। इस बिंदु पर प्रथ्वी और सूर्य का गुरूत्वाकर्षण संतुलित रहता है। लैग्रांजी बिंदु L-1 और प्रथ्वी के मध्य दूरी 15 लाख किमी है। |
7. आदित्य L-1 सूर्य का अध्ययन करने वाला प्रथम भारतीय मिशनः-
आदित्य L-1 सूर्य का अध्ययन करने वाला प्रथम भारतीय मिशनः- |
1. यह सूर्य का अध्ययन को समर्पित इसरो के द्वारा प्रतिस्थापित भारत का पहला वैज्ञानिक अंतरिक्ष मिशन या सौलर मिशन है। आदित्य-1 की संकल्पना दृश्य उत्सर्जन रेखा प्रभामंडललेखी नामक पेलोड को ले जाने हेतु 400 किग्रा श्रेणी उपग्रह के रूप में किया गया था तथा उसे 800 किमी निम्न भूकक्षा में स्थापित करने की योजना व कार्यप्रणाली थी। 2. आदित्य एल-1 को 2020 में प्रक्षेपित किया गया। 3. सूर्य और प्रथ्वी के लेग्रांजी बिंदु के आसपास प्रभामंडल की कक्षा में स्थापित उपग्रह से मुख्य लाभ यह होता है कि इसे बिना किसी ग्रहण या आच्छादन के लगातार सूर्य को देखा जा सकता है। अतः आदित्य -1 को अब आदित्य एल-1 मिशन के रूप में संशोधित कर दिया गया है। 4. यह सौर झंझावत की उत्पति व विकास एवं उनके द्वारा प्रयोग किये जाने वाले पथ को समझने में मदद करेगा। यह कोरोना था पर्यावरण पर सौर्य पवनों के प्रभावों को समझने व उनका अध्ययन करने में सहायता करेगा।
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8. एस्ट्रोसेट मिशनः-
एस्ट्रोसेट मिशनः- |
1. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा खगोलिय पिंडों के अध्ययन के लिए पुरी तरह से समर्पित भारत के प्रथम अंतरिक्ष आधारित खगोलशाला। 2. ऐसा करने वाला भारत चौथा देश बन गया है। अभी तक अमेरिका रूस और जापान ने ही अंतरिक्ष वेधशाला को लांच किया है। 3. एस्ट्रोसेट को प्रविी से 650 किमी की ऊॅचाई पर कक्षा में स्थापित किया गया । 4. 28, सितंबर 2015 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्री हरिकोटा से पीएसएलवी सी-30 द्वारा प्रमोचित किया गया । 5. एस्ट्रोसेट मिशन की अपेक्षित न्युन्तम उपयोगी कालावधि मात्र 5 वर्ष है। |
एस्ट्रोसेट मिशन के उद्देश्यः- |
1. न्युट्रान तारा तथा ब्लैक हॉल शामिल करते हुए द्विविआधारी तारा प्रणाली में उच्च ऊर्जा प्रक्रियाओं को समझना। 2. न्यूट्रान तारे के चुंबकीय क्षैत्र का आकलन। 3. हमारी आकाशगंगा से परे स्थित तारा प्रणालियों में तारा उत्पति क्षैत्र तथा उच्च ऊर्जा प्रक्रियाओं का आकलन। 4. आकाश में नए संक्षिप्त चमकिले एक्स रे स्त्रोत का संसूचन। 5. पराबैंगनी क्षैत्र के ब्रह्मांड के सीमित गहन क्षेत्र सर्वेक्षण का निष्पादन।
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