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लोक कल्याणकारी राज्य का अर्थ और परिभाषा, लोक कल्याणकारी राज्य की विशेषतांए, लोक कल्याणकारी राज्य के कार्यः-

लोक कल्याणकारी राज्य का अर्थ और परिभाषा, लोक कल्याणकारी राज्य की विशेषतांए, लोक कल्याणकारी राज्य के कार्यः-

 

लोक कल्याणकारी राज्य का अर्थ और परिभाषा, लोक कल्याणकारी राज्य की विशेषतांए, लोक कल्याणकारी राज्य के कार्यः-


"Knowledge with Ishwar"


लोक कल्याणकारी राज्य का अर्थः-


लोक कल्याणकारी राज्य से तात्पर्य उस राज्य  से होता हैैैं। जहां विधी और न्याय व्यवस्था स्थापित की जाती हो, साथ ही वे सभी कार्यों को क्रियान्वित करता हैैै। जिससे नागरिकों को अधिक से अधिक कल्याण हो। लोक कल्याणकारी राज्य में नागरिकों की सभी न्युन्तम आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती है तथा  उसके विकास के उचित अवसर प्रदान किये जाए। ग्रीन महोदय को कल्याणकारी राज्य की अवधारणा का अग्रदुत माना जाता है। राज्य के द्वारा  उन परिस्थितियों की सृष्टि करना है जिनका उपयोग करके व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकें।


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लोक कल्याणकारी राज्य की परिभाषाः-


1. महाकाव्य महाभारत में कहा गया है कि- ’’राज्य को निरंतर सत्य की रक्षा करनी चाहिए। व्यक्तियों के नैतिक जीवन का पथ-प्रदर्शन, शुद्धि तथा नियंत्रण करना चाहिए तथा पृथ्वी को मनुष्य के निवास-योग्य तथा सुखदायिनी बनाना चाहिए।’’


2.लास्की महोदय के शब्दों में- ’’लोक कल्याणकारी राज्य लोगों का एक ऐसा संगठन है जिसमें सबका सामूहिक रूप से सामाजिक हित निहित है।’’


3.जी. डी. एच.कोल के अनुसार- ’’लोक कल्याणकारी राज्य एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था का नाम है जिसमें सभी नागरिकों को न्युनतम जीवन-स्तर की गारंटी तथा विकास के उचित अवसर प्रदान किये जायंे।’’


4. टी. डब्लू. केंट के अनुसार- ’’लोक कल्याणकारी राज्य वह राज्य है जो अपने नागरिकों के लिये व्यापक सामाजिक सेवाओं की व्यवस्था करता है।


5. इनसाइक्लोपिडीया ऑफ सोशल  साइन्सेज के अनुसार- ’’लोक कल्याणकारी राज्य का तात्पर्य एक ऐसे राज्य से होता है जो अपने सभी नागरिकों को न्युन्तम जीवन-स्तर प्रदान करना अपना अनिवार्य दायित्व समझता है।’’ 


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लोक कल्याणकारी राज्य की प्रमुख विशेषतांएः- 


1. यह नागरिकोें की स्वतंत्रता को बाधित नहीं करता हैः- लोक कल्याणकारी राज्य नागरिकों की स्वतंत्रता को कभी बाधित नही करता है।लोक कल्याणकारी राज्य उन कार्य को करने के लिए सतसंकल्पीत है कि जिनसे नागरिकों के विकास के अवसर प्राप्त हो।


2. यह जनहित के कार्य संपन्न करता हैः- लोक कल्याणकारी राज्य मे सभी हितों से जनहित को अधिक महत्व दिया जाता हैै। डी. डब्ल्यू केंट के अनुसार-’’वह राज्य लोक कल्याणकारी होता है जो अपने नागरिकों के लिए व्यापक समाज सेवाओं का प्रबंध करता है। इन समाज सेवाओं के अनेक रूप होते हैं। इनके अंतर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य , बेरोजगारी उन्मूलन तथा वृद्धावस्था में पेंशन जैसे विषय रखे जा सकते हैं। इसका मुख्य उददेश्य नागरिकों को सभी प्रकार की सुरक्षा प्रदान करना होता है।’’


इस प्रकार लोक कल्याणकारी राज्य के द्वारा लोगों के जनहित में अन्य सेवाओं का समुचित प्रबंध किया जाता है। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी व वृद्धावस्था पंेशन आदि के द्वारा जनहित करने का प्रयास किया जाता है।


3. आर्थिक हितों पर विशेष बलः- लोक कल्याणकारी राज्य में नागरिकों के आर्थिक हितो पर विशेष बल दिया जाता है। इसके लिए सभी को अपने आर्थीक विकास के लिए योग्यता व क्षमता के अनुसार रोजगार प्रदान किये जाते हैं। जिससे व्यक्ति की न्यून्तम आवश्यकताओं  की पूर्ति हो सके, क्राउथर ने लिखा है- ’’नागरिकों के लिए अधिकार के रूप में उन्हें स्वस्थ बनाये रखने के लिये पर्याप्त भोजन की व्यवस्था होनी चाहिए। निवास, वस्त्र, आदि के न्यून्तम स्तर की ओर से उन्हें चिंतारहित रहना चाहिए। बेरोजगारी, बीमारी तथा वृद्धावस्था के कष्टों से उनकी रक्षा होनी  चाहिए।’’


4. वैयक्तिक स्वतंत्रता  और जनकल्याण के बीच समन्वयः- इसका अर्थ यह है कि लोक कल्याण कारी राज्य ऐसा कोई भी कार्य नहीं करता है, जिससे व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन हो। इसके द्वारा अपने कल्याणकारी कार्यक्रमोें के आधार पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता को हानि नहीं पहुचायी जाती है। लोक कल्याणकारी राज्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जनकल्याण के मध्य सामांजस्य स्थापित करता है।


5. समाजसेवी राज्यः- लोक कल्यायणकारी राज्य में समाजसेवा की भावना निहित होती है। यह वह हर संभव प्रयास करता हैै। जिससे नागरिकों को अधिक से अधिक लाभ पहूॅचाकर समाजसेवा की जा सकें इसके लिए लोक कल्याणकारी राज्य शिक्षा के लिए समुचित साधन उपलब्ध कराता है। स्वास्थ्य सेवाओं व बिमारियों की रोकथाम के लिए ,महामारियों से नागरिकों को स्वस्थ रखने के लिए टिकाकरण अभियान को राष्ट्रीय स्तर पर चलाना, गरीबी तथा बेरोजगारी को मिटाने के लिए कार्य योजनांए निर्धारित कर उन्हें क्रियान्वित करना।

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लोक कल्याणकारी राज्य के कार्यः- 


1. शांति और व्यवस्था की स्थापनाः- लोक कल्याणकारी राज्य का प्रमुख कार्य  होता है कि वह राज्य में शांति और सुव्यवस्था की स्थापना करें । जिससे व्यक्ति अपने स्वयं को सुरक्षित समझें। राज्य द्वारा अशांति फैलाने वाले असामाजिक तत्वों पर कठोर दण्डात्मक कार्यवाही की जानी चाहिए। जो देश के माहौल को खराब करने की चेष्ठा करतें हैं। लोक कल्याणकारी राज्य  के द्वारा शांति और सुव्यवस्था को क्रियान्वित करने के लिए वैयक्तिक स्वतंत्रता में अवरोध उत्पन्न न हो इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए।


2. सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्थाः- लोक कल्याणकारी राज्य का एक महत्वपूर्ण कार्य यह होता है कि इसके द्वारा जाति धर्म, वंश, रंग, रूप, संप्रदाय, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। सामाजिक सुरक्षा के अंतर्गत लोक कल्याणकारी राज्य में कमजोर वर्गों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। कमजोर वर्गों को सामाजिक सुरक्षा का प्रबंध करना इसका प्रमुख लक्ष्य है। जिससे उनमें हिनता का भाव पैदा न हो।


3. आर्थिक सुरक्षा की व्यवस्थाः- लोक कल्याणकारी राज्य अपने नागरिकों की आर्थिक सुरक्षा की विशेष व्यवस्था करता है। लोक कल्याणकारी राज्य के द्वारा ऐसी व्यवस्था की जाती है जिससे प्रत्येक व्यक्ति की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके । इसके साथ ही समाज के भौतिक संसाधनों का लाभ सभी व्यक्ति को मिलना चाहिए।


4. आर्थिक विषमता को दूर करनाः- लोक कल्याणकारी राज्य के द्वारा आर्थिक विषमता को कम करने का प्रयास किया जाता है। समाज में व्याप्त उंच-निच, अमीर-गरीब जैसी आर्थिक विषमता को दूर करने के लिए गरीब व्यक्तियों की आर्थिक स्थिति सुधारनें और उन्हें उपर उठाने के लिए अमीर व्यक्तियों पर विभिन्न प्रकार के कर लगाये जाते हैं तथा उनसे प्राप्त होने वाले धन से कई लोक कल्याणकारी योजनाओं को क्रियान्वित किया जाता है।


5. नागरिक सेवाएं उपलब्ध करनाः- लोक कल्याणकारी राज्य द्वारा अपने नागरिकों के समस्त शारीरिक, भौतिक, मानसिक सुविधा के लिए सभी प्रकार की सुविधांए उपलब्ध कराई जाती है। शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, बैंकिग, विद्युत आदि का प्रबंध लोक कल्याणकारी राज्य के द्वारा किया जाता है। हाब्सन महोदय के अनुसार- ’’उसके द्वारा डाक्टर, नर्स, व्यापारी, उत्पादक, बीमा कंपनी के एजेण्ट, गृह निर्माणक, रेल्वे नियंत्रक तथा अन्य सैकड़ों रूपो में कार्य किया जाता है।’’


6.नागरिकों के बोद्धिक विकास का मार्ग प्रशस्त करनाः- नागरिकों के बौद्धिक विकास और आत्मिक विकास के लिए कई सांस्कृतिक आयोजन कराये जाते हैं, साथ ही अंतर्राष्ट्रीय जगत में अन्य देशों के साथ सांस्कृतिक आदान प्रदान के समझौते किये जाते हैं तथा अन्य शैक्षणिक सुविधांए राज्य के द्वारा नागरिकों को उपलब्ध कराई जाती है।


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