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इतिहास किसे कहते? प्राचीन इतिहास की सम्पूर्ण जानकारी। prachin itihas ki jankari in hindi

नमस्का दोस्तों आपका स्वागत है हमारे ब्लॉग पर आज के आर्टीकल में हम इतिहास से संबंधी विभिन्न तथ्यों की विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगें। इस आर्टीकल में हम इतिहास के विभिन्न कालों तथा उनसे जुडे़ हुए सभी बिंदुओं की विस्तृत चर्चा करेंगें। जिससे किसी भी परिक्षा में इतिहास किसे कहते हैं। इतिहास से संबंधित महत्वूपर्ण जानकारी। इतिहास के प्रकार से जुडी जानकारी। इतिहास को कितने भागों में बांटा गया है कि जानकारी आदि प्रश्नों के उत्तर आसानी से दे सकें।


तो आइये दोस्तों आपका ज्यादा समय न लेते हुए आज के आर्टीकल की शुरूआत करतें हैंः- 



    1-  इतिहास किसे कहते हैं


    अतीत में घटी घटनाओं का विवरण, जिन्हें अभिलेख, पुरातात्विक स्त्रोत, साहित्य, शिलालेख आदि के माध्यम से पढ़ा व समझा जाता है, इतिहास कहलाता है।

    दुसरे शब्दों मेंः-  मानवीय संस्कृति की यात्रा में घटित सभी प्रकार की भुतकालीन घटनाओं के क्रमबद्ध तथ्यों के ज्ञान की प्रस्तुती को इतिहास कहा जाता है।


    इतिहास का पिता किसे कहा जाता है?


    उत्तर:- ग्रिक निवासी हेरोडोटस जो कि एक इतिहासकार व भुगोलवेत्ता थे, उन्होंने सबसे पहले हिस्ट्री history शब्द का प्रयोग किया इन्होंने अपनी पुस्तक का नाम हिस्ट्री (history) रखा। सर्वप्रथम इतिहास के बारे में जानकारी प्रस्तुत करने के कारण इन्हें इतिहास का पिता कहा जाता है। 


    भारतीय इतिहास का पिता किसे कहा जाता है?

    उत्तरः-  मेगास्थनिज को भारतीय इतिहास का जनक कहा जाता है। मेगास्थनिज सेल्युकस निकेटर के राजदुत थे। यह भारत में चंद्रगुप्त मौर्य के राजदरबार में आये थै। इन्होंने अपनी पुस्तक का नाम इंण्डिका रखा। जिसमें पटना के बारे में विस्तृत जानकारी दी हुई है। इसलिए इन्हें भारतीय इतिहास का जनक भी कहा जाता है। 


    आधुनिक इतिहास के जनक किसे कहा जाता है। बिशप विलियन स्टब्स


    2- इतिहास की समयावधि व काल विभाजन


    इतिहास का क्रमबद्ध ज्ञान प्राप्त तभी हो सकता है जब हमें विभिन्न घटनाओं एवं उनकी कालावधि का ज्ञान हो।

    इतिहास में समय को ज्ञात करने के लिए BC (Before Christ) व AD (Anno Domino) का प्रयोग किया जाता है।


    BC का अर्थः-  BC का अर्थ ईसा पूर्व होता है जिसे Before Christ के नाम से जाना जाता है अर्थात जो घटनायें ईसा के जन्म से पूर्व घटित हुई है वे सभी BC में होती है। 

     जैसेः- 323 BC या 323 ईसा पूर्व इसका अर्थ है कि ईसा के जन्म के 323 वर्ष पूर्व 


    AD का अर्थः- AD का अर्थ होता है Anno Domino जिसे कहा जाता है जिसका हिंदी अनुवाद है ईसा। अर्थात जो घटनायें ईसा के जन्म के बाद घटित हुई है ईसा कहलायेंगी। 

    उदा. 1442 ई. 


    एक और उहारण है कि 560 BC आज से कितने वर्ष पूर्व थ। 

    इस प्रश्न के लिए आपको जो वर्तमान वर्ष चल रहा है उसे लिख देना है और उसमें जो भी BC (560) काल लिखा हो उसे जोड़ देना है।


    2022+560 = 2582 वर्ष पूर्व


    और यदि AD पुछे तो

    2022+ 560 = 1462 वर्ष पूर्व 

    ध्यान रहे यदि BC हो तो वर्तमान वर्ष में BC वर्ष को जोड़ना है तथा यदि AD हो तो वर्तमान वर्ष में AD वर्ष को घटाना है तभी सही समय ज्ञात किया जा सकता है।


    इतिहास को कितने भागों में बांटा गया है।


    इतिहास को तीन भागों में बांटा गया हैः-

    1. प्राचीन इतिहास

    2. मध्यकालीन इतिहास

    3. आधुनिक इतिहास


    दोस्तों अब हम एक एक करके इतिहास के प्रकारों की विस्तृत चर्चा करेंगें।



    3- प्राचीन इतिहास


    प्राचीन इतिहास को भी तीन कालो में बांटा गया है


    1. प्राग एतिहासिक काल

    2. आध इतिहासिक काल

    3. ऐतिहासिक काल


    प्राग ऐतिहासिक कालः-  (25 लाख ई पु से 3 हजार ई पु तक) के काल को प्राग ऐतिहासिक काल कहा जाता है। इस काल के पुरातात्विक साक्ष्य उपलब्ध है किंतु कोई भी लिपी उपलब्ध नहीं है।


    आघ ऐतिहासिक कालः- (3 हजार ई पु से 6 सौ ई पु तक) के काल को आघ ऐतिहासिक काल के नाम से जाना जाता है। इस काल के पुरातात्विक साक्ष्य के साथ साथ लिपि भी उपलब्ध है किंतु उसे आज दिन तक पढ़ा नहीं जा सका है अर्थात लिपि अपठनीय है।


    ऐतिहासिक काल:- (6 सौ ई. पूर्व से आज तक) के काल को ऐतिहासिक काल के नाम से जाना जाता है। इस काल के पुरातात्विक साक्ष्य उपलब्ध है लिपि उपलब्ध है तथा लिपि पठनीय है जिसे पढा व समझा जा सकता है तथा पर्याप्त रूप में इस काल के बारे में जाना जा सकता है। 


    दोस्तो प्राग ऐतिहासिक काल को फिर तीन भागों में बांटा गया है।

    1. पुरा पाषण काल

    2. मध्य पाषाण काल

    3. नव पाषाण काल


    अब हम एक एक करके उपरोक्त तीनों कालों के बारे में जानकारी प्राप्त करतें हैं।

    सबसे पहले हम पुरा पाषाण काल के बारे में जानकारी प्राप्त करतें हैं?


    4- पुरापाषाण कालः-

    पत्थर के औजारों के स्वरूप तथा जलवायु के आधार पर तीन भागों में विभाजित है।

    1. पूर्व पुरा पाषाण कालः- 5 लाख से 50 हजार ई पु तक

    2. मध्य पुरा पाषाण कालः- 50 हजार से 40 हजार ई पु तक

    3. उच्च पुरा पाषाण कालः- 40 हजार से 10 हजार ई पु तक 


    4.1-पूर्व पुरापाषाण कालः-


    1. इसे निम्न पुरापाषाण काल भी कहा जाता है।

    2. इस काल में मानव कृषि व पशुपालन से परिचित नही था अर्थात आखेटक व खाद्य संग्राहक था जो कि आखेट व खाद्य का संग्रह कर अपना जिवीकोपार्जन करता था।

    3. इस काल का मानव केवल बड़े पशुओं का ही शिकार करना जानता था। 

    4. इस काल के पत्थर क्वार्टजाइट पत्थरों से निर्मीत होते थे।


    (1) चापार- चापिंग पैबुल संस्कृति,


    1. इस संस्कृति के उपकरण सर्वप्रथम पाकिस्तान के पंजाब स्थित सोहन नदी घाटी से प्राप्त हुए। इसी कारण इसे सोहन संस्कृति के नाम से भी जाना जाता है। 

    2. सोहन नदी सिंधु नदी की सहायक नदी थी।

    3. 1928 ई. में डी एन वाडिया  ने यहां उपकरण खोजा था।

    4. पत्थर के वे टुकडे जिनके किनारे पानी के बहाव में रगड़ खाकर चिकने और सपाट हो जाते हैं। पैबुल कहलाते हैं।

    5. चाकार बडे आकार वाला वह उपकरण है जो पेबुल से बनाया जाता है।

    6. सोहन संस्कृति के साक्ष्य कश्मीर घाटी से प्राप्त नहीं होते हैं क्योंकि यह उस समय भी पर्वतीय क्षैत्र रहा होगा।


    (2) हेण्डऐक्स संस्कृतिः- 


    1. सर्वप्रथम उपकरण मद्रास के निकट अत्तिरपक्कम से प्राप्त हुए हैं जिस कारण इसे मद्रासीय संस्कृति के नाम से भी जाना जाता है।

    2. सर्वप्रथम 1863 ई में राबर्ट ब्रुसफुट ने तमिलनाडु मद्रास के समीप अत्तिरपक्कम नामक स्थान पर प्रथम भारतीय पुरापाषाण कलाकृति हेंडोएक्स प्राप्त किया था।

    3. नर्मदा व सोन घाटी से मानव की खोपड़ी मिली है जो भारत में मानव अवशेष का सर्वप्रथम साक्ष्य है। इसकी कारण इसे नर्मदा मानव भी कहा गया है।

    4. मानवाभ कपि का सर्वप्रथम प्रमाण असम में मिले जिसे श्वेत गिबन कहा जाता है।


    4.2- मध्य पुरा पाषाण कालः-


    1. मानव आखेटक व खाद्य संगाहक के रूप में 

    2. फलक उपकरणों की अधिकता के कारण मध्य पुरा पाषाण काल को फलक संस्कृति के नाम से भी जाना जाता है।

    3. एच डी संकालिया ने प्रवरा नदी घाटी मतें स्थित नेवासा को इस संस्कृति का प्रारंभिक स्थल माना है। 

    4. पंजाब में इस संस्कृति का अभाव पाया गया ।



    4.3- उच्च पुरा पाषाण काल


    1. मानव आखेटक व खाद्य संग्राहक

    2. खुरचनीख् लक्षीणी जैसे ब्लेड उपकरणों के साक्ष्य

    3. नक्काशी व चित्रकारी कला का विकास

    4. इलहाबाद स्थित वेलन घाटी के लोहदा नाले से इस काल की अस्ति निर्मीत मातृदेवी की प्रतिमा प्राप्त होती है। जो कि कोशांबी संग्राहल में संरक्षित है।

    5. मप्र की भीमबेटका के शैलाश्रयों से विश्व की सबसे प्राचीनतम चित्रकारी के साक्ष्य प्राप्त होते हैं।

    6. चकमक प्रस्तर उपकरणों का प्रयोग अर्थात मानव आग से परिचित हो चुका था अर्थात दावानल से परिचित था कितु आग का प्रयोग करना नहीं जानता था।

    7. इसी काल में आधुनिक मानव होमों सेपियंस का विकास प्रारंभ हुआ।


    5- मध्य पाषाण कालः- 


    1. इस काल की सर्वप्रथम जानकारी 1867 ई. सी एन कार्लाइल द्वारा विंध्य क्षैत्र से प्राप्त लघु पाषाण उपकरणों से प्राप्त हुई।

    2. छोटे पत्थरों से बने उपकरण माइक्रोलिथ (सुक्ष्म पाषाण)

    3. इस काल में छोटे जानवरों के शिकार करना आदिमानव ने सिख लिया।

    4. तीर कमान का उपयोग

    5. आदमगढ़ से पशुपालन के प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त ।

    6. प्रथम पालतु जानवर कुत्ता

    7. इस काल के सर्वाधिक शैलचित्र भीमबैटका के शैलाश्रयों से प्राप्त ।

    8. गंगा घाटी में स्थित सराहय, नाहरराय, मदादहा, दमदमा भारत में सबसे प्राचींतम मध्य पाषाणकालीन साक्ष्य मिलते हैं। यहीं से सर्वप्रथम स्तंभगर्त व गर्तचुल्हों के प्रारंभिक साक्ष्य मिले।

    9. आग का अविष्कार व उपयोग (शिकार पकाने में)

    10. राजस्थान सांभर झील से प्राचीनतम वृक्षारोपण के साक्ष्य प्राप्त ।


    6- नवपाषाण कालः-


    1. नवपाषाणकाल का सर्वप्रथम प्रमाण सर जॉन लुवाक ने 1865 ई में प्राप्त किया।


    2. प्रमुख विशेषतायेंः- 


    1. कृषि कार्य

    2. पशुपालन 

    3. पत्थर के ओजारों को पॉलिशदार व घर्षित करना।

    4. मृदभांड बनाना

    5. अग्नि के उपयोग का ज्ञान

    6. पहिये का अविष्कार

    7. आखेट व खाद्य संग्रहण

    8. स्थायी निवास

    9. अधिशेष उपज

    10. भण्डारण की व्यवस्था


    3. पाकिस्तान में स्थित पश्चिमी बलुचिस्तान प्रांत के मेहरगढ़ नामक स्थान से कृषि के प्रारंभिक साक्ष्य प्राप्त ।

    4. प्रथम फसलः- गैंहु और जौ

    5. मेहरगढ से कपास उत्पादन के प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त।

    6. विश्व की प्राचीनतम फसल गैहुं है।

    7. मेहरगढ़ को बलुचिस्तान की रोटी की टोकरी भी कहा जाता है।

    8. मेहरगढ से भारत में स्थायी निवास के प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त होते हैं।

    9. पालतु भैसें का प्राचीनतम साक्ष्य भारतीय महाद्विप में मेहरगढ़ से प्राप्त ।

    10. अन्य फसलः- चावल (कोल्डी हवा, उत्तरप्रदेश से प्राप्त)

    11. प्रथम औजारः- कुल्हाड़ी (अतिरपक्कम तमिलनाडु से प्राप्त)

    12. वन्य एवं कृषि जन्य दोनों प्रकार की धान की खेती के प्राचीनतम साक्ष्य उपरोक्त स्थान से प्राप्त होते हैं।

    13. चोपानीमांडी स्थान से चाक निर्मीत मृदभांडो के प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त होते हैं। 

    14. बुर्जहोम से मालिक के साथ कुत्ते को दफनाने के प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त ।

    15. गुफ्फकराल से मृदभांडरहित गर्तनिवास के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।

    16. दक्षिण भारत से प्राप्त पहली फसलः- रागी (मिलेट) व दुसरी फसल कुलथी थी।



    7- ताम्रपाषाण कालः-


    1. ताम्रंपाषाण काल को अंग्रजी में चालकोलिथ एज Chacolith age के नाम से जाना जाता है।

    2. मनुष्य द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली प्रथम धातु तांबा थी।

    3. निम्न गुणवत्ता युक्त कांसे का प्रयोग।


    (1) आहार/ गिलुन्द/ बनास संस्कृतिः-


    1. इस संस्कृति की मुख्य विशेषताओं वाला स्थल आहार है। जिस कारण इसे आहार संस्कृति भी कहा जाता है। 

    2. आहार को ताम्रवती कहा गया है। तांबे के औजारों की अधिकता के कारण ।

    3. एच डी संकालियो को अग्निकुंड के प्रमाण प्राप्त ।


    (2) कायथा संस्कृतिः-


    1. 1664 ई में श्रीधर वाकड़कर द्वारा कायथा संस्कृति को प्रकाश में लाया गया।

    2. यह संस्कृति हड़प्पा संस्कृति की कनिष्ठ समकालिन मानी गयी है।


    (3) स्वालदा संस्कृतिः- यह संस्कृति ताप्ती नदी के किनारे 

    (4.) एरण/ नवदाटोली/नागदा/मालवा संस्कृतिः- 


    1. एच डी संकालिया द्वारा उत्खनित नवदाटोली मालवा संस्कृति का सबसे विस्तृत ताम्रपाषाणकालीन स्थल है।

    2. सर्वाधिक फसलों की संख्या।

    3. मालवा संस्कृति के लोग कटाई/ बुनाई में दक्ष।


    (5.) जोरवे संस्कृतिः- 


    1. प्रमुख विशेषताः- पूर्ण शवदान व कलश शवदान पद्धति।

    2. मृतकों को उत्तर- दक्षिण दिशा में दफनाया जाता।

    3. सर्वाधिक बच्चों के शवों को घरों के निचे दफनाया जाता।

    4. दफनाने के साथ आवश्यकताओं की वस्तुओं को भी रखा जाता।

    5. शवाधानों से प्राप्त साक्ष्यों से ज्ञात होता है वयस्कों व शिशुओं के दंतक्षरण तथा शिशओं में स्कर्बी रोग।

    6. इनामगांव में कृत्रिम सिंचाई के प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त होते हैं।

    7. बस्ती की किलाबंदी की जाती थी।

    8. नेवासा से पटसन, रेशम उत्पादन के विश्व के प्राचीनतम साक्ष्य।

    9. दायमाबादः- तांबे का रथ, भैंसा, घोडा व गणेश पुजा के साक्ष्य।

    10. दायमाबाद से हडप्पा काल में कांसे का रथ प्राप्त होता है। 


    (6) ताम्र निधान संस्कृतिः-


    1. ताम्र निधान संस्कृति में ताम्र संचय का प्रथम साक्ष्य 1882 ई पु कानपुर से प्राप्त हुआ।

    2. ताम्र संचय का सबसे बड़ा भंडार (424 ताम्र उपकरण मध्यप्रदेश के गंगोरिया से प्राप्त हुए)

    3. सर्वाधिक स्थानः- इस संस्कृति के सर्वाधिक स्थान उत्तरप्रदेश में थे।


    (7) गैरिक मृदभांड संस्कृतिः- 


    इसका नामकरण हस्तिनापुर से प्राप्त मृदभांडों के आधार पर किया गया है। यह संस्कृति तांबे के उपयोग से संबंधित थी।


    (8) काले वा लाल मृदभांड संस्कृतिः- सर्वप्रथम साक्ष्य उत्तरप्रदेश के अतरंजीखेड़ा से प्राप्त।

    (9) चित्रित धुसर मृदभांड संस्कृति सर्वप्रथम साक्ष्य उत्तरप्रदेश स्थित अहिच्छत्र से प्राप्त हुआ है। यह संस्कृति लोहे के उपयोग से संबंधित है।


    (10) उत्तरी काले पॉलिशदार मृदभांड संस्कृतिः- 


    1. सर्वप्रथम साक्ष्यः-  तक्षशीला से जो कि मौर्यकालीन है।


    नोटः- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की स्थापना 1861 ई में सर अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा प्राप्त हुई है। 

    अलेक्जेंडर कनिंघम को भारतीय पुरातत्व का जन्मदाता भी कहा जाता है।

     भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के प्रथम महासचिवः- सर अलेक्जेंडर कनिंघम ही थे।

    आशा करता हॅु दोस्तों आपको हमारे द्वारा बतायी गई जानकारी पसंद आयी होगी  और उम्मीद करता हॅु इस जानकारी को प्राप्त कर आप किसी भी परिक्षा में इस पोस्ट में बताये गये टॉपीक्स से संबंधित किसी भी प्रश्न का आसानी से जवाब दे पायेंगंे।

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