वैदिक काल महत्वपूर्ण प्रश्न
नमस्कार दोस्तों आपका स्वागत है हमारे ब्लॉग पर आज के आर्टिकल में हम जानने वाले हैं प्राचीन इतिहास के एक ओर नए अध्याय के बारे में जिसमे हम जानने वाले हैं कि वैदिक सभ्यता किसे कहते हैं साथ ही इसी अध्याय में हम वैदिक काल ओर ऋग्वेदिक काल के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी विस्तार से प्राप्त करेंगे।
वैदिक काल को दो भागों में बांटा जाता है।
ऋग्वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल
सबसे पहले हम वैदिक सभ्यता के बारे में जान लेते हैं कि वैदिक सभ्यता किसे कहते हैं तथा उसके बारे में थोड़ा सा विस्तार से वर्णन करतें हैं।
वैदिक सभ्यताः-
वैदिक सभ्यता आर्यों के द्वारा विकसित एक ग्रामीण सभ्यता थी। आर्यों का मुल निवास मध्य एशिया था ऐसा मेक्समुलर का मानना था। आर्यों ने सर्वप्रथम पंजाब व अफगानिस्तान सिंधु के आस पास अपना निवास किया था।
वैदिक सभ्यता की जानकारी हमें ऋग्वैदिक साहित्य से प्राप्त होती है। जिसके माध्यम से ऋग्वैदिक कालीन भाषा, संस्कृति, खान-पान, रहन सहन के साथ ही सामाजिक, आर्थीक, धार्मीक आदि बातों की जानकारी इन साहित्य से प्राप्त की जा सकती है। तो आइये साहित्य के द्वारा आर्यों एवं वैदिक सभ्यता के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेते हैं।
2. भाषाः-
वैदिक साहित्य को श्रुति या अपोरूषेय व नित्य भी कहा जाता है।
वैदों का संकलन महर्षि कृष्ण द्वेपायन ने किया था। इसी कारण महर्षि कृष्ण द्वेपायन को वेदव्यास कहा जाता है।
पृथम तीन वेद को वैदत्रयी कहा जाता है। अथर्ववेद में यज्ञ का वर्णन न होने से वैदत्रयी में शामिल नहीं किया गया है।
आइये हम वैदों के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर लेते हैं।
वैदः-
वैदिक सभ्यता में चार वैदों की रचना की गयी है।
1. ़ऋग्वेद
2. यजुर्वेद
3. अर्थववेद
4. सामवेद
1. ऋग्वेदः-
1. सबसे प्राचीन ग्रंथ 2. भाषाः- संस्कृत तथा ब्राह्म लिपी 3. अर्थः- ऋ्क का अर्थः- छंदबद्ध रचना या श्लोक। 4. ऋग्वेद के सुक्त देवी देवताओं की स्तुतियों से संबंधित होन से प्रार्थनाओं के रूप में ऋग्वेद में संकलित है। 5. रचनाः- सप्त सैंधव प्रदेश में सरस्वती नदी के किनारे ऋग्वैद की रचना की गयी है। 6. ऋग्वेद एक संहिता है जिसमंे 3 पाठ, 10 मण्डल, तथा 1028 सुक्त एवं 10462 ऋचायें हैं। 7. पाठः- होत या होतृ नामक पुरोहितों के द्वारा ऋग्वेद का पाठ किया जाता है या ऋग्वेद का पाठ करने वाले पुरोहितों को होत या होतृ पुकारा जाता है। 8. ऋग्वेद के 2 रे से 7 वे मंडल सबसे प्राचीन है। इन मण्डल की रचना एक ही गोत्र के द्वारा किये जाने के कारण इन्हें गोत्र मण्डल भी कहा जाता है। 9. गोत्र शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद मे मिलता है। 10. 1 ले, 8 वे, 9वे मंडल परवर्तीकाल के है। 11. 3रा मंडल की रचना विश्वामित्र ऋषि ने की थी। जिसमें गायत्रीमंत्र संकलित है जो सुर्य की उपासना से सबंधित है। जिसका उपयोग अनार्य (जो आर्य न हो) को आर्य बनाने में भी किया जाता है। 12. 9 वां मंडल सोम देवता को समर्पित। 13. 10 वां मंडल सबसे पुराना/प्राचीन/परावर्ती। जिसके एक भाग में पुरूष सुक्त है। जिसमें सर्वप्रथम शुद्रों की चर्चा की गयी। साथ ही इसी मंडल में चतुवर्ण व्यवस्था का वर्णन किया गया। चार वर्णः- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वेश्य, क्षुद्र का उल्लेख ऋग्वेद के 10 मंडल में है। 14. ऋग्वेद की कुछ ऋचाओं की रचना लोपामुद्रा, घोषा, सच्ची, पैलमी तथा कक्षावृत्ति नामक विदुषी स्त्रियों ने की। 15. 10462 ऋचायेंः- 1. इंद्रः- 250 ऋचायें (सर्वाधिक) 2. अग्निः-200 ऋचायें 3. पढ़ने वाला ऋषिः- होत या होतृ 16. जानकारीः- ऋग्वेद से हमें आर्यों की राजनीतिक प्रणाली की जानकारी प्राप्त होती है। 17. 8वा (आठवा) मंडल में हस्तलिखित ऋचाओं के हाने से इसे खिल कहा गया है। 18. चार वर्णों के कर्तव्यों के उल्लेख के लिए पृथक से धर्मसुत्र की रचना की गयी। जिसमें सभी वर्णों के कर्तव्यों का उल्लेख है। वर्ण व्यवस्था का आधार जन्म न होकर कर्म था। नोटः- वैदिक सभ्यता में ऋग्वेद के बाद शतपथ ब्राह्मण का स्थान।
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2. सामवेद
1 गाए जा सकने वाले ऋचाओं का संकलन जो कि पद्य गंथ होता है सामवेद है। 2 भारतीय संगीत का जनक सामवेद को कहा जाता है। 3. सामवेद के पाठकर्ता को उद्रातु या उद्गाता कहा जाता है। 4. साम का अर्थ हैः- गायन 5 सात स्वरों का सर्वप्रथम उल्लेख सामवेद में ही मिलता है।
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3 यजुर्वेद
1 गद्य एवं पद्य दोनों में रचित गं्रथ यजुर्वेद है। 2. यज्ञों से संबंधित आनुष्ठानिक व कर्मकाण्डीय विधियों का उल्लेख यजुर्वेद में मिलता है। 3. यजुर्वेद के पाठकर्ता को उध्वर्यु कहा जाता है। |
4. अथर्ववेद
1 सबसे आखरी में रचित वेद को अथर्ववेद कहा जाता है। 2. अथर्ववेद के रचियता अथर्वा ऋषि थे। 3. जानकारियांः- (क) रोग-निवारण, जादु-टोना, विवाह व भुत-प्रेत आदि की जानकारी। (ख) सामान्य मनुष्यों के विचार, विश्वास व अंधविश्वास की जानकारी। (ग) सभा व समितिः- प्रजापति की पुत्रियां। (घ) कन्याओं के जन्म की निंदा। (ड़) शल्य क्रिया का सर्वप्रथम उल्लेख। 4. पाठः- यजुर्वेद के पाठ को करने वाले को ब्रह्मा कहा जाता है। यज्ञ में होने वाली बाधाओं का निराकरण करने के कारण इसे ब्रह्म वेद या श्रेष्ठ वेद भी कहा जाता है। |
उपवेदः-
1. अर्थवेद
2. गंधर्ववेद
3 धनुर्वेद
4 आयुर्वेद
5. वेदांग/सुत्र साहित्यः-
1. वेदों को समझने हेतु रचित।
2. संख्याः- 06
(क) शिक्षा:- उच्चारण
(ख) कल्पः- रस्म और समारोह
(ग) व्याकरण:- व्याकरण
(घ) निरूक्तः- शब्दों की उत्पति
(ड़) छंद
(च) ज्योतिष
6. पुराण
पुराणों की संख्या 18 है।
1 भारतीय ऐतिहासिक कथाओं का सबसे क्रमबद्ध वर्णन पुराणों में मिलता है।
2 पुराणों के रचियता लोमहर्ष व उनके पुत्र उग्रश्रृवा को माना जाता है।
3 अधिकांश पुराण श्लोक संस्कृत में रचित होते हैं।
4 पुराणों के पाठ करने वाले व्यक्ति को ंपुजारी कहा जाता है।
5 स्त्री और शुद्र को इनके पठन की अनुमति नहीं किंतु सुन सकते हैं।
6 प्रमुख पुराणः-
(क) मत्स्य पुराण -- सबसे प्राचीन पुराण (आंध्र सातवाहन)
(ख) विष्णु पुराण -- मौर्य वंश
(ग) वायु पुराण -- गुप्त वंश
(घ) ब्राह्मण पुराण -- पुरूवंश (महापुराण )
(ड़) भागवद पुराण -- श्री कृष्ण भक्ति
पुराणः- 1 ब्रह्म पुराण 2 पद्म पुराण 3 विष्णु पुराण 4 वायु पुराण (शिव) 5 भागवद् पुराण 6 नारद पुराण 7 मार्कण्डेय पुराण 8 अग्नि पुराण 9 भविष्य पुराण 10 ब्रह्मवेवर्त पुराण 11 लिंग पुराण 12 वाराह पुराण 13 स्कंद पुराण 14 वामन पुराण 15 कुर्म पुराण 16 मत्स्य पुराण 17 गरूड़ पुराण 18 ब्रह्मांड पुराण
ब्राह्मण
यज्ञों और कर्मकांडों के विधान को ब्राह्मण कहते हैं।
प्रमुख ब्राह्मण ग्रंथःः-
1 ऋग्वेदः- ऐतरेय ब्राह्मण, शांखायन या कौषीतकि ब्राह्मण
2 शुक्ल यजुर्वेदः- शतपथ ब्राह्मण
3 कृष्ण यजुर्वेदः- तैत्तिरीय ब्राह्मण
4 सामवेदः-‘ पंचविश या ताण्डय, षड़विश, सामविधान, वंशमंत्र, जैमिनिय ब्राह्मण
5. अथर्ववेदः- गोपथ ब्राह्मण
नोटः- शतपथ ब्राह्मण:- स्त्री को पुरूष की अर्धांगिनी माना।
अन्य वैदिक साहित्यः-
1 मैत्रेयनी:- स्त्री की सर्वाधिक गिरी हुई स्थिति को बताया गया है।
जुआ, शराब की भांति स्त्री तिसरा मुख्य दोष।
2 मनुस्मृतिः- सबसे प्राचीन स्मृति ग्रंथ है। यह शुंग काल का गं्रथ है।
3 नारद स्मृतिः- गुप्त युग की जानकारी।
7. आरण्यक
1 ब्राह्मणों के पारिशिष्ट।
2 अरण्यक का अर्थः- वन में लिखा जाने वाला ं इसे वन पुस्तक भी कहा जाता है।
3 दार्शनिक सिद्धांतों एवं रहस्यवाद का वर्णन।
8. उपनिषद्
1 उप एवं निष् धातु से बना जिसका अर्थ है -- उप का अर्थ है समीप तथा निष् का अर्थ है बैठना अर्थात् वह शास्त्र या विद्या जो गुरू के पास बैठकर एकांत में सीखी जाती है।
2 उपनिषद वेदों के अंतिम भाग है अतः इन्हें वेदांत भी कहा जाता है।,
3 पूर्णतः दार्शनिक बातों का उल्लेख, ज्ञान पर बल, ब्रह्म व आत्मा के संबंधों का निरूपण।
4 संख्याः- 108 जिनमें 10 मुख्य उपनिषद है। जिन पर शंक्राचार्य ने टिका लिखी है।
5 सबसे प्राचीन उपनिषद को छांदोग्य उपनिषद कहा जाता है।
आर्य शब्द का अर्थ:- श्रेष्ठ
आर्यों का मुल निवासः- युरेशिया व आल्पस पर्वत के पूर्वी क्षैत्र को माना जाता है।
आर्यों के आगमन की तिथीः- 1400 ई. पु. बोगाजकोई अभिलेख द्वारा।
वैदकालिन नदियांः-
वैदिक संहिता में 31 नदियों का उल्लेख ।
सिंधु नदी का सर्वाधिक उल्लेख ।
आर्यों की पवित्र नदी:- सरस्वती जिसे नदीतमा, मातेतमा, देवीतमा कहा गया ।
ऋग्वैदिक (सप्त सैंधव प्रदेश )
नदियां पुराना नाम
सिंधु हिरण्यनी
सरस्वती नदीतमा
झेलम वितस्ता
चेनाब अस्किनी
रावी परूषणी
व्यास विपासा
सतलज शतुद्रि
ऋग्वैदिक काल की विशेषतायेंः-
1. राजनीतिक एवं प्रशासनिक जीवनः-
(1) राजनीतिक व्यवस्था राजतंत्रात्मक तथा कबिलायी संरचना पर आधारित थी। राजा को जनस्यगोपा कहा जाता था।
(2) राजा के कर्तव्यः- 1 युद्ध में सेना का नेतृत्व तथा कबिले के लोगों की रक्षा
(3) बालि नामक स्वैच्छीक कर का प्रचलन।
(4) प्रशासनिक व्यवस्था 5 भागों में विभाजित:-
इकाई प्रमुख
जन
(सबसे बडी इकाई) जनस्यगोपा, राजा , राजन
विश विशपति
ग्राम ग्रामिणी
कुल
(सबसे छोटी इकाई) कुलपति , गृहपति
राजा को गोपति , युद्ध को गविष्ठी, समय को गोधुलि, दुरी को गवयतु , पुत्री को दुहिता, गाय को अघन्या (वध न करने योग्य)
प्रमुख प्रशासनिक अधिकारीः-
1 पुरोहित धार्मिक अधिकारी (वशिष्टः- रूढिवादी, विश्वामित्रः- उदारवादी।
2 स्पश गुप्तचर
3 सुत रथकार
4 वाजपति चारागाह
5 पुरप दुर्गपति
6 उग्र पुलिस अधिकारी
7 रत्नी ( 12 व्यवसाय के लिए:- कुम्हार, सुनार, सुतार, कम्मादि)
5 सर्वाधिक महत्वपूर्ण सैनिक और पुरोहित को माना जाता था।
6 न्यायिक अधिकारियों का उल्लेख नहीं।
7. मुख्य व्यवसाय पशुपालन था तथा पशु चोरी एक प्रमुख अपराध था।
8 दण्ड के रूप में शतदाय एवं वरदेय (बदला प्रथा) का प्रचलन।
9 शतदायः- उच्च श्रेणी के व्यक्ति की हत्या का दण्ड 100 गायों के रूप में लिया जाता था।
2 संस्थायें
1 सभा (राज्यसभा के समान ही श्रेष्ट लोगों की सभा)
2 समिति (सामान्य जनों की समिति जो लोकसभा के समान होती थी। )
3 सभा और समिति में महिलायें भाग ले सकती थी। समिति का अध्यक्ष इशान कहलाता था।
4 सभा (न्यायिक कार्य) और समिति राजा को सलाह देती थी।
5 विदथ:- आर्यों की प्राचीन संस्था जो सैनिक , असैनिक व धार्मीक कार्यों से संबंधित होती थी।
3. युद्ध व सेना
1 स्थायी सेना का अभाव पाया जाता था।
2 नागरिक सेना को मिलीशिया कहा जाता था।
3 युद्ध के लिए गविष्ठि का प्रयोग किया जाता था।
4 दसराज्ञ युद्धः- दस राजाओं का युद्ध
ऋग्वेद के 7वें मंडल में वर्णन है कि रावी नदी (परूष्णी) के किनारे युद्ध हुआ जो 10 राजाओं का युद्ध था। पहला कबिला भरत था। जिसका राजा सुदास था। दुसरी तरफ नो राजा थे। जिसमें सुदास की विजय हुई ।
4 सामाजिक जीवनः-
1 समतामुलक समाज था। वर्ण व्यवस्था का प्रचलन था। वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर विभाजित थी। जिसमें 4 वर्ण प्रमुख थे।
2 पितृसत्तात्मक समाज ।
3 संयुक्त परिवार (दादा दादी , नाना-नानी सभी हेतु नप्तृ का प्रयोग)
4 स्त्रियों की दशा अच्छी थी। उपनयन संसकार व शिक्षा प्राप्ति का अधिकार।
5 लोपामुद्रा घोषा, विश्वारा, सिक्ता, अपाला आदि विदुषी स्त्रियों ने ऋग्वेद की ऋचायें लिखी।
6 पुनर्विवाह, बहुपति विवाह, नियोग प्रथा आदि का प्रचलन ।
7 बालविवाह, दहेजप्रथा, पर्दाप्रथा व सती प्रथा आदि का प्रचलन नहीं।
8 दास प्रथा का प्रचलन।
9- 2 प्रकार के विवाह 1 अनुलोम एवं प्रतिलोम।
10 समाज में अनुलोम विवाह को मान्यता।
11 स्त्रियों को पति के साथ यज्ञ में बैठने कीी अनुमति।
12 विधवा देवर के साथ विवाह कर सकती थी।
13 अविवाहित रहने का महिला को अधिकार।
14 अविवाहित महिला को अमाजु कहा जाता था।
5 जीवनशैली
आर्यों का प्रिय पशु घोड़ा था। तथा पवित्र पशु गाय थी।
मनोरंजन के लिए संगीत , नृत्य, घोड़ादौड़ व रथदौड़ प्रचलित।
मुख्य पेय सोमरस था जो वनस्पति से निर्मीत होता था तथा प्रिय भोजन क्षीरपकोदन था।
अनाजः- यव जौ का सेवन किया जाता था।
ऋग्वेद में सुरापान की निंदा की गयी है।
वस्त्र व पहनावा तीन प्रकार का होता था। तीन प्रकार (वास, अधिवास, उष्णीय)
सुती व ऊनी वस्त्रों का प्रयोग किया जाता था। अंदर पहनने वाले कपड़ों को नीवि कहा जाता था।
6 आर्थीक जीवन
1 व्यापार हेतु दुर दुर जाने वाले व्यक्तियों को उस समय पणि कहा जाता था।
2 वस्तु विनिमय प्रणाली का प्रचलन।
3 ब्याज पर ऋण देने वाले को वेकनॉट या सुदखोर कहा जाता था।
4 मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। उसके बाद कृषि को भी अपनाया जाने लगा।
5 धातु में लोहा (श्याम अयस्क) आर्यों ने खोजा तथा तांबा (लोहित अयस्क)
7 धार्मीक जीवन
1 प्रकृतिवादीः- प्रकृति, वृक्षों एवं गाय की पुजा की जाती थी। गाय को पवित्र माना जाता था तथा गाय का वध प्रतिबंध था, गाय को अघन्या कहा जाता था।
2 पवित्र नदी सरस्वती को माना गया है।
3 सबसे महत्वपूर्ण देवताः-
(1) इंद्र- वर्षा का देवता, युद्ध का देवता व पुरंदर अर्थात दुर्गों को तोड़ने वाला माना गया । ऋग्वेद में 200 ऋचायें इंद्र को समर्पित।
(2) अग्निः- मध्यस्थता के देवता, ऋग्वेद में 200 ऋचायें अग्नि देवता को समर्पित।
(3) वरूण:- ऋतस्यगोपा कहा गया जिसका अर्थ नैतिक आचरण का संरक्षक है।
4 बहुदेववाद और अंत में एकेश्वरवाद।
5 स्थान विशेष के आधार पर देवताओं का वर्गीकरण जैसे आकाश के देवता, पृथ्वी के देवता आदि।
6 सूर्य की उपासना:- विश्वामित्र के द्वारा ऋग्वेद के 10 वे मंडल में गायत्री मंत्र का उल्लेख , गायत्री मंत्र का प्रयोग सूर्य की उपासना करने और अनार्य को आर्य बनाने के लिए किया जाता था।
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