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विधान परिषद के कार्य एवं शक्तियां, vidhan parishad



विधान परिषद के कार्य एवं शक्तियां, vidhan parishad


"knowledge with ishwar"

 

विधान परिषदः-


विधान परिषद राज्य के विधानमंडल का द्वितीय सदन होता है। जो कि संविधान के अनुच्छेद 271 में वर्णीत है। सामान्य तौर पर विधान परिषद में विधानसभा के सदस्यो के एक तिहाई 1/3 सदस्यों को शामिल किया जाता है। विधान परिषद भारत के राज्यों- कर्नाटक, बिहार, उत्तरप्रदेश,महाराष्ट्र, अंाध्रप्रदेश, तेलंगाना व एक कंेद्रशासित प्रंदेश जम्मु और कश्मीर में है। इनकी अधिकतम सदस्य संख्या विधानसभा के सदस्य संख्या की 1/3 संख्या से अधिक तथा न्युन्तम सदस्य संख्या 40 से कम नही होनी चाहिए। मात्र जम्मु कश्मीर विधानपरिषद का अपवाद था। जहॉं सदस्यों की संख्या मात्र 26 थी। विधान परिषद का गठन प्रत्यक्ष रूप से होता हैं। जम्मु और कश्मीर की विधान परिषद को कश्मीर पुर्नगठन विधेयक के माध्यम से समाप्त कर दिया गया । 


कार्यकालः- 


विधान परिषद के प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है। प्रत्येक 2 वर्ष में परिषद के 1/3 सदस्य सेवानिवृत्त हो जाते हैं तथा उनके स्थान पर दूसरे सदस्य आ जाते हैं। विधान परिषद के सदस्य अपना कार्यकाल पूर्ण हाने से पूर्व त्याग पत्र देकर अपने पद से मुक्त हो सकते हैं।


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विधान परिषद सदस्यों के लिए योग्यतांएः- 


1. विधान परिषद के सदस्यों के लिए भारत का नागरिक होना आवश्यक है।

2. उसकी आयु 30 वर्ष से अधिक हो।

3. विधान परिषद के सदस्य के लिए आवश्यक है कि वह संघ अथवा राज्य सरकार के अधीन किसी भी लाभ के पद पर कार्यरत न हो।

4. वह विधान परिषद के द्वारा निर्धारित की गई योग्यतांए रखता हो।


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विधान परिषद की शक्तियॉ व कार्यः- 


1. विधायी शक्तियॉः- 


विधान मण्डल के किसी भी सदन में साधारण विधेयक को प्रस्तुत कियंा जा सकता हैं। एक सदन में प्रस्ताव पारित होने के पश्चात उसे दूसरे सदन में स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। दूसरा सदन यदि चाहे तो उसमे संशोधन कर सकता है। दूसरे सदन में स्वीकृति के पश्चात उसे राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर हेतु भेज दिया जाता है। इस प्रकार विधान परिषद को विधानसभा के समान कानून बनानें का अधिकार प्राप्त होता हैं।


2. वित्तीय शक्तियॉः- 


संविधान द्वारा विधान परिषद को वित्तीय मामलों में राज्यसभा के समान ही निर्बल माना गया हैं । सामान्यतः वित्त विधेयक को विधान परिषद में प्रस्तुत न किया जाकर विधानसभा में प्रस्तुत किया जाता हैं। वित्त प्रस्तावों को विधानसभा में प्रस्तुत किया जाता है। वित्त विधेयक विधानसभा में पारित होने के पश्चात विधान परिषद में स्वीकृति हेतु भेजा जाता है। जो विधान परिषद को 14 दिनों के भीतर लौटाना आवश्यक होता है। यदि 14 दिनों के भीतर विधान परिषद के द्वारा विधानसभा को विधेयक स्वीकृत कर भेजा नहीं जाता है तो वित्त विधेयक को स्वीकृत माना जाता है साथ ही विधान परिषद के द्वारा वित्त विधेयक के संबंध में की गई सिफारिश को मानने के लिए विधानसभा बाध्य नहीं है। इस प्रकार विधान परिषद के पास वित्त विधेयक के संबंध में शक्तियॉ न के बराबर हैं।



इस प्रकार आप विधान परिषद की शक्तियों व कार्यों का विस्तार से अध्ययन कर सकते हैं।


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